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( २५ )

मानते हैं। तुम तो बड़े साध सतबादी हो जो हमारे हेतु अपने पुत्र ले आये।

ऐसे कह जब कंस बार बार हाथ जोड़ने लगा तब वसुदेवजी बोले― महाराज, तुम सच कहते हो, इसमें तुम्हारा कुछ दोष नहीं, बिधना ने यही हमारे कर्म में लिखा था। यो सुन कंस प्रसन्न हो अति हित से बसुदेव देवकी को अपने घर ले आया, भोजन करवाय बागे पहराय, बड़े अदर भाव से दोनो को फेर वहीं पहुँचाय दिया और मंत्री को बुलाके कहा कि देवी कह गई है कि तेरा बैरी जग में जन्मा, इससे अब देवता को जहाँ पावो तहाँ भारो, क्योकि विन्होई ने मुझसे झूठी बात कही थी कि आठवे गर्भ में तेरा शत्रु होगा। मंत्री बोला―महाराज विनका मारना क्या बड़ी बात है, वे तो जन्म के भिखारी है, जद आप कोर्पियेगा तधी वे भाग जायँगे। विनकी क्या सामर्थ है जो तुम्हारे सनमुख हो। ब्रह्मा तो आठ पहर ज्ञान ध्यान में रहता है, महादेव भाँग धतूरा खाय, इंद्र का कुछ तुमपर न बसाय। रहा नारायन सो संग्राम नहीं जाने, लक्ष्मी के साथ रहती है सुख माने। कंस बोला―नारायन को कहाँ पावे और किस बिधि जीते सो कहो। मंत्री ने कहा―महाराज, जो नारायन को जीता चाहते हो तो जिनके घर में आठ पहर है विनका वास, तिनही का अब करो बिनास। ब्राह्मन, बैष्णव, जोगी, जती, तपसी, सन्यासी, बैरागी आदि जितने हरि के भक्त है तिनमे लड़के से ले बूढ़े तक एक भी जीता न रहे। यह सुन कंस ने प्रधान से कहा― तुम सब को जा मारो। आज्ञा पाकर मंत्री अनेक राक्षस साथ ले बिदा हके नगर में जा, लगा गौ, ब्राह्मन, बालक, औ हरिभक्तो को छल बल कर ढूँँढ ढूँँढ़ मारने।