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दधिकादौ किया कि सारे गोकुल में दही दही कर दिया। जब दुधिकादौ खेल चुके तब नंदजी ने सब को खिलाय पिलाय, बागे पहराय, तिलक कर पान दे बिदा किया।

इसी रीति से कई दिन तक बधाई रही। इस बीच नंदजी से जिस जिसने जो जो आय आय माँगा सो पाया। बधाई से निश्चिंत हो नंदजी सब ग्वालो को बुलाय के कहा—भाइयो, हमने सुना है कि कंस बालक पकड़ मँगवाता है, न जानिये कोई दुष्ट कुछ बात लगा दे, इससे उचित है कि सब मिल भेंट ले चले औ बरसौड़ी दे आवे। यह वचन मान सब अपने अपने घर से दूध, दही, माखन और रुपए लाए, गाड़ी में लाद लाद नंद के साथ हो गोकुल से चल मथुरा आए। कंस से भेटकर भेट दी। कौड़ी कौड़ी चुकाय बिदा हो जुहार कर अपनी बाट ली।

जोही जमुना तीर पै आए तोही समाचार सुन बसुदेवजी आ पहुँचे। नंदजी से मिल कुशल क्षेम पूछ कहने लगे―तुम सा सगा औ मित्र हमारा संसार में कोई नही, क्योंकि जब हमें भारी विपत भई तत्र गर्भवती रोहनी तुम्हारे यहाँ भेज दी, किसके लड़का हुआ सो तुमने पाल बड़ा किया, हम तुम्हारा गुन कहाँ तक बखाने। इतना कह फेर पूछा―कहो राम कृष्ण और जसोदा रानी आनंद से है। नंदजी बोले―आपकी कृपा से सब भले हैं और हमारे जीवनमूल तुम्हारे बलदेवजी भी कुशल से हैं, कि जिनके होते तुम्हारे पुन्य प्रताप से हमारे पुत्र हुआ, पर एक तुम्हारेई दुख से हम दुखी है। बसुदेव कहने लगे-मित्र, विधाता से कुछ न बसाय, कर्स की रेख किसी से मेटी न जाय। इस संसार में आय दुःख पीर पाय कौन पछुताय। ऐसे ज्ञान जनाय के कहा―