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तद जसोदा को ज्ञान हुआ तो मन में कहने लगी कि मैं बड़ी मूरख हूँ जो त्रिलोकी के नार्थ को अपना सुत कर मानती हूँ।

इतनी कथा कह श्रीशुकदेव राजा परिक्षित से बोले―हे राजा, जब नंदरानी ने ऐसा जाना तब हरि ने अपनी माया फैलाई। इतने में मोहन को जसोदा प्यार कर कंठ लगाय घर ले आई।