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प्रेमाश्रम


हेठी थोड़े ही हुई जाती है? हेठा न तो नारायण ने ही बना दिया है। तो क्या अकड़ने से ऊँचे हो जायँगे? थोड़ा-सा घी हांड़ी में है, दो-चार दिन में और बटोर लूँगी, जाकर तौल आना।

बलराज क्यों दे आयें ? किसी के दबैल हैं।

बिलासी --- नहीं, तुम तौ लाटवर्नर हो। घर में भूनी भाँग नहीं, उस पर इतना घमंड?

बलराज --- हम दरिद्र नहीं, किसी से माँगने तो नहीं जाते?

बिलासी --– अरे जा बैठ, आया है बड़ा जोवा बनके। ऊँट जब तक पहाड़ पर नहीं चढ़ता तब तक समझता है कि मुझसे ऊँचा और कौन होगा? जमीदार से वैर कर गाँव में रहना सहज नहीं है। (मनोहर से) सुनते हो महापुरुष: कल कारिंदा के पास जाके कह-सुन आओ।

मनोहर --- तो बच नहीं जाऊँगा। बिलासी क्यों? ननोहर व्यों क्या, रूपनी खुशी है। जायें क्या, अपने ऊपर तालियों लगवायें ? बिलामी-अच्छा, तो मुझे जाने दोगे? ननोहर गुन्हें भी न जाने दूंगा। कारिदा हमारा नर ही ज्या सकता है ? बहुत भरेगा स्ना निकमी खेत छोड़ा लेगा। न दो हल चलेंगे, एक ही सही। यद्यपि मनोहर बढ़-बढ़ कर बातें कर रहा था, पर वास्तव में उसका इन्कार अव पराज त समान था। यदि विना दूसरों की दृष्टि में अपमान उनये विगड़ा हुमा खेल बन जाय तो उसे कोई आपत्ति नहीं थी। हाँ, वह स्वयं क्षमा-प्रार्थना करने में अपनी ही समझता था। एक बार तन कर फिर झुकना उसके लिए बड़ी लज्जा की बात थी। बलराज की उइंडता उसे शांत करने में हानि के भय से भी अधिक सफल हुई । प्रातःकाल बिलासी चौपाल जाने को तैयार हुई पर न मनोहर साय चलने को राजी होता था, न दलराज। बक्ली जाने की उसकी हिम्मत न पड़ती थी। इतने में नादिर मियां ने घर में प्रवेश लिया। बूढ़े बादमी थे, गिना डील, लम्बी दाढ़ी, घुटने के उपर तक घोती, एक गाड़े की मिरपई पहने हुए थे। गांव के नाते से वह मनोहर के बड़े भाई होते थे। विलासी ने उन्हें देखते ही थोड़ा-सा चूंघट निकाल लिया।

कादिर ने चिंतापुर्ण भाव से कहा, अरे मनोहर, क्ल तुम्हें क्या सूझ गयी ? जल्दी नागरकारिता साह्म को मना लो, नहीं तो फिर कुछ करते-घरते न बनेगी। नुना है व्ह तुम्हारी शिकान्त करने मालिकों के पास जा रहे हैं। सुक्टू भी साय जाने को गर है। नहीं मालूम, दोनों में क्या सांगां हुई है।

बिलासी --- भाई जी, यह बढ़े हो गये, लेन्नि इनका लड़कपन अभी नहीं गया। जितना म्यादी हूँ, बस अपने ही मन की करते हैं। इन्हीं की देखा-देखी एक लड़न है वह मी हाय से निकला जाता है। जिसने देखोनी से उलझ पड़ता है। भला इनमें