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प्रेमाश्रम

से अविश्वास सूचक प्रश्न करते, मुद्दई के वकील के प्रश्नों पर शंकाएँ करते। ज्ञानशंकर ने शाम को यह समाचार सुना तो चकित हो गये। यह तो विचित्र आदमी है। इधर भी चलती हैं, उधर भी। मुझे नचाना चाहता है। यह पद पा कर दोरंगी चाल चलना सीख गया है। जी में आया, चल कर साफ-साफ कह दूँ, मित्रों से यह यह कपट अच्छा नहीं। या तो दुश्मन बन जाओ या दोस्त बने रहो। यह क्या कि मन में कुछ और मुख में कुछ और। इसी असमंजस में एक सप्ताह गुजर गया। दूसरी तारीख निकट आती जाती थी। ज्ञानशंकर का चित्त बहुत उद्विग्न था। उन्होंने मन में निश्चय कर लिया था कि अगर इन्होंने फिर दोरंगी चाल चली तो अपना मुकदमा किसी दूसरे इजलास में उठा ले जाऊँगा। दबूँ क्यों?

लेकिन जब दूसरी तारीख को ज्वालासिंह ने लखनपुर जा कर मौके की जाँच करने के लिए फिर तारीख बढ़ा दी तो ज्ञानशंकर झुंझला उठे। क्रोध में भरे हुए विद्या से बोले, देखी तुमने इनकी शरारत? अब मौके की जाँच करने जा रहे हैं! अब नहीं रहा जाता। जाता हूँ, जरा दो दो बातें कर आऊँ।

विद्या-तुम इतना अधीर क्यों हो रहे हो? क्या जाने वह दूसरों को दिखाने के लिए यह स्वाँग भर रहे हों। अपनी बदनामी को सभी डरते हैं।

ज्ञान-तो आखिर कब तक मैं फैसले का इन्तजार करता रहूँ? यहाँ बैठे-बैठे मेरी कई सौ रुपये महीने की हानि हो रही है।

ज्ञानशंकर ने अभी तक विद्या से गायत्री के अनुरोध की जरा भी चर्चा न की थी। इस समय सहसा मुंह से बात निकल गयीं। विद्या ने चौंक कर पूछा, हानि कैसी हो रही है?

ज्ञानशंकर ने देखा, अब बातें बनाने से काम न चलेगा और फिर कब तक छिपाऊँगा। बोले, मुझे याद आती हैं, मैंने तुमसे गायत्री देवी के पुत्र का जिक्र किया था। उन्होंने मुझे अपनी रियासत का मैनेजर बनाने का प्रस्ताव किया है और जल्द बुलाया है।

विद्या—तुमने स्वीकार भी कर लिया?

ज्ञान—क्यों न करता, क्या कोई हानि थी?

विद्या--जब तुम्हें स्वयं इतनी मोटी-सी बात भी नहीं सूझती तो मैं और क्या कहूँ। भला सोचो तो दुनिया क्या कहेगी। लोग यही समझेंगे कि अबला विधवा है, नातेदार जमा हो कर लूट खाते हैं। तुम चाहे कितने ही निःस्पृह भाव से काम करो, लेकिन बदनामी से न बच सकोगे, अभी वह तुम्हारी बड़ी साली हैं, तुमसे कितना प्रेम करती हैं, कितनी ही बार तुम्हारी चारपाई तक बिछा दी है। इस उच्चासन से गिर कर अब तुम उनके नौकर हो जाओगे और मुझे भी बहिन के पद से गिरा कर नौकरानी बना दोगे। मान लिया कि वह भी तुम्हारी खातिर करेंगी, लेकिन वह मृदुभाव कहाँ? लोग उनसे तुम्हारी जा-बेजा शिकायतें करेंगे। मुलाहिजे के मारे वह तुमसे कुछ न कह सकेंगी, मन ही मन कुढ़ेगी। मैं तुम्हें नौकरी के विचार से जाने की कभी सलाह न ददूँगी।

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