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प्रेमाश्रम

पहर रात रहे घर से गायब हो गये थे। कादिर ने कहा, भगत, घर मे क्यो धुसे बैठे हो ? चलो, हम लोग भी चलते है। भगत ने द्वार खोला और बाहर निकल आये। कादिर हँस कर बोले, आज हमारी बाजी हैं। देखे कौन ज्यादा घास छीलता है। भगत ने कुछ उत्तर न दिया। सब लश्कर के मैदान में आये और घास छीलने लगे।

मनोहर ने कहा--खाँ साहब के कारण हम भी चमार हो गये।

दुखरन--भगवान की इच्छा। जो कभी न किया, वह आज करना पड़ा।

कादिर--जमीदार के असामी नही हो ? खेत नही जोतते हो ?

मनोहर--खेत जोतते है तो उसका लगान नही देते हैं। कोई भकुआ एक पैसा भी तो नहीं छोडता।

कादिर--इन बातों में क्या रक्खा है? गुड खाया है तो कान छिदाने पडेगे। कुछ और बात-चीत करो। कल्लू, अब की तुम ससुराल में बहुत दिन तक रहे। क्या-क्या मार लाये ?

कल्लू--मार लाया? यह कहो जान ले कर आ गया। यहाँ से चला तो कुल साढे तीन रुपये पास थे। एक रुपये की मिठाई की, आठ आने रेल का किराया दिया, दो रुपये पास रख लिये। वहाँ पहुँचते ही बडे साले ने अपना लडका ला कर मेरी गोद में रख दिया। बिना कुछ दिये उसे गोद में कैसे लेता? कमर से एक रुपया निकाल कर उसके हाथ मे रख दिया। रात को गाँव भर की औरतो ने जमा हो कर गाली गायी। उन्हें भी कुछ नेग-दस्तूर मिलना ही चाहिए था। एक ही रुपये की पूँजी थी, वह उनकी भेट की। न देता तो नाम हँसाई होती। मैंने समझा यहाँ रुपयो का ओर काम ही क्या है और चलती बेर कुछ न कुछ बिदाई मिल ही जायेगी। आठ दिन चैन से रहा। जब चलने लगा तो सामने एक मटका खॉड, एक टोकरी ज्वार की बाल और एक थैली में कुछ खटाई भर कर दी। पहुँचाने के लिए एक आदमी सार्थ कर दिया। बस बिदाई हो गयी। अब बडी चिन्ता हुई कि घर तक कैसे पहुँचूँगा? जान न पहचान, माँगूँ किससे? उस आदमी के साथ टेसन तक आया। इतना बोझ ले कर पैदल घर तक आना कठिन था। बहुत सोचते समझते सूझी कि चल कर ज्वार की बाल कहीं बेच दूँ। आठ आने भी मिल जायँगे तो काम चल जायगा। बाजार में आ कर एक दुकानदार से पूछा, बाले, लोगे ? उसने दाम पूछा। मेरे मुँह से निकला, दाम तो मैं-नही जानता, आठ आने दो, ले लो। बनिये ने समझा चोरी का माल है। थैली पटका, बाले सब रखवा ली और कहा चुपके से चले जाओ, नही तो चौकीदार को बुला कर थाने भिजवा दूँगा। तो भैया क्या करता ? सब कुछ वही छोड कर भागा। दिन भर का भूखा-प्यासा पहर रात गये घर आया। कान पकडे कि अब ससुराल न जाऊँगा।

कादिर--तुम तो सस्ते ही छूट गये। एक बेर मै भी ससुराल गया था। जवानी की उमर थी। दिन भर धूप में चला तो रतौघी हो गयी। मयर लाज के मारे किसी से कहा तक नही। खाना तैयार हुआ तो साली दालान में बुलाकर भीतर चली गयी।