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प्रेमाश्रम

अम्माँ कहती है अब तो बहुत देर हो गयी, हाजीपुर कैसे जाइएगा ? यही भोजन कर लीजिए और आज यही रह जाइए।

प्रेमशकर शोकमय विचारों की तरग मे भूल गये कि अभी मुझे हाजीपुर लौटना है । माया को प्यार करके बोले, नही बेटा, मैं चला जाऊँगा, अभी ज्यादा रात नही गयी है। यहाँ रह जाऊँ, तो वहाँ बडा हर्ज होगा।

यह कह कर वह उठ खड़े हुए। ज्ञानशकर की ओर करुण नेत्रों से देखा और बिना कुछ कहे ही चले गये । ज्ञानशकर ने उनकी तरफ ताका भी नहीं।

उनके जाने के बाद डाक्टर महोदय बोले, मैं तो इनकी बडी तारीफ सुना करता था, पर पहली ही मुलाकात मे तबीयत आसूदा हो गयी। कुछ क्रुद्ध-से मालूम होते है।

ज्ञान--बड़े भाई है, उनकी शान मैं क्या कहूँ, कुछ दिनों अमेरिका क्या रह आये है भोया हक और इन्साफ का ठेका ले लिया है। हालांकि अभी तक अमेरिका में भी यह खयालात अमल के मैदान से कोसों दूर है। दुनिया में इन खयालो के चर्चे हमेशा रहे है और हमेशा रहेगे। देखना सिर्फ यह है कि यह कहाँ तक अमल में लाये जा सकते हैं। मैं खुद इन उसूलो का कायल हूँ, पर मेरे खयाल में अभी बहुत दिनो तक इस जमीन में यह बीज सरसब्ज नही हो सकता हैं।

इसके बाद कुछ देर तक इस दुर्घटना के सम्बन्ध में बातचीत होती रही। जब डाक्टर साहब और ईजाद हुसेन चले गये तब ज्ञानशकर घर मे जा कर बोले, देखा, भाई साहब ने लखनपुर में क्या गुल खिलाया ? अभी खबर आयी है कि गौस खाँ को लोगो ने मार डाला। दोंनो स्त्रियाँ हक्की बक्की होकर एक दूसरे का मुँह ताकने लगी।

ज्ञानशकर ने फिर कहा, यह वर्षों से वहाँ जा-जा कर असामियो से जाने क्या कहते थे, न जाने क्या सिखाते थे, जिसका यह नतीजा निकला है। मैंने जब इनके वहाँ आने-जाने की खबर पायी तो उसी वक्त मेरे कान खड़े हुए और मैंने इनसे विनय की थी कि आप गँवारो को अधिक सिर ने चढाये। उन्होने मुझे भी वचन दिया कि उनसे कोई सम्बन्ध न रखूँगा। लेकिन अपने आगे किसी को समझते ही नहीं । मुझे भय है कि कहीं इस मामले में वह भी न फँस जायँ । पुलिसवाले एक ही कट्टर होते है। वह किसी न किसी मोटे असामी को जरूर फाँसेगे । गाँववालो पर जरा सख्ती की कि सब खुल पड़ेंगे और सारी अपराध भाई साहब के सिर डाल देगे।

श्रद्धा ने ज्ञानशकर की ओर कातर नेत्रों से देखा और सिर झुका लिया ।अपने मन के भावो को प्रकट न कर सकी। विद्या ने कहा, तुम जरा थानेदार के पास क्यो नही चले जाते ? जैसे बने, उन्हें राजी कर लो।

ज्ञान--हाँ, कुछ न कुछ तो करना ही पड़ेगा, लेकिन एक छोटे आदमी की खुशामद करना, उसके नखरे उठाना कितने अपमान की बात है । भाई साहब को ऐसा न समझता था।

श्रद्धा ने सिर झुकाये हुए सरोष स्वर से कहा, पुलिसवाले उन पर जो अपराध लगाये, वह ऐसे आदमी नही है कि गाँववालो को वहकाते फिरें, बल्कि अगर गाँव-