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प्रेमाश्रम


चाहे तो आज हमारा ठिकाना न लगे! अब तो यही विनती है कि जो खता हुई, माफी दी जाय।

लाला प्रभाशंकर को मनोहर पर दया आ गयी, सरल प्रकृति के मनुष्य थे। बोले, तुम लोग हमारे पुराने असामी हो, क्या नहीं जानते हो कि असामियों पर सख्ती करना हमारे यहाँ का दस्तूर नहीं है? ऐसा ही कोई काम आ पड़ता है तो तुमसे बैगार ली जाती है और तुम हमेशा उसे हंसी-खुशी देते रहे हो। अब भी उसी तरह निभाते चलो। नहीं तो भाई, अब जमाना नाजुक है, हमने तो भली-बुरी तरह अपना निभा दिया, मगर इस तरह लड़को से न निभेगी। उनका खून गर्म ठहरा, इसलिए सब संभल कर रहो, चार बात सह लिया करो, जाओ, फिर ऐसा काम न करना। घर से कुछ खा कर चले न होगे। दिन भी चढ़ आया, यही खा-पी कर विश्राम करो, दिन ढले चले जाना।

प्रभाशंकर ने अपने निद्वंद्व स्वभाव के अनुसार इस मामले को टालना चाहा, किंतु ज्ञानशंकर ने उनकी ओर तीन नेत्रों से देख कर कहा, आप मेरे बीच मे क्यों बोलते हैं? इस नरमी ने तो इन आदमियों को शेर बना दिया है। अगर आप इस तरह मेरे कामों में हस्तक्षेप करते रहेगें तो मैं इलाके का प्रबंध कर चुका। अभी आपने वचन दिया है कि इलाके से कोई सरोकार न रखूंगा। अब आपको बोलने का कोई अधिकार नहीं है।

प्रभाशंकर यह तिरस्कार न सह सके, रुष्ट होकर बोले, अधिकार क्यों नहीं है? क्या मैं मर गया हूँ?

ज्ञानशंकर-नहीं, आप को कोई अधिकार नहीं है। आपने सारा इलाका चौपट कर दिया, अब क्या चाहते है कि जो बचा-खुचा है, उसे धूल में मिला दे।

प्रभाशंकर के कलेजे में चोट लग गयी। बोले, बेटा। ऐसी बातें करके क्यों दिल दुखाते हो? तुम्हारे पूज्य पिता मर गये, लेकिन कभी मेरी बात नहीं दुलखी। अब तुम मेरी जबान बंद कर देना चाहते हो, किंतु यह नहीं हो सकता कि अन्याय देखा करूं और मुंह न खोलें। जब तक जीवित हूँ, तुम यह अधिकार मुझसे नहीं छीन सकते।

ज्वालासिंह ने दिलासा दिया, नहीं साहब, आप घर के मालिक हैं, यह आपकी गोद के पले हुए लड़के हैं, इनको अबोध बातों पर ध्यान न दीजिए। इनकी भूल है जो कहते है कि आपका कोई अधिकार नहीं है। आपको सब कुछ अधिकार है, आप घर के स्वामी है।

गौस खां ने कहा, हुजूर का फर्माना बहुत दुरुस्त है। आप खानदान के सरपरस्त और मुरब्बी हैं! आपके मन्सब से किसे इनकार हो सकता है?

ज्ञानशंकर समझ गये कि ज्यालासिंह ने मुझसे बदला ले लिया, उन्हें यह खेद हुआ कि ऐसी अविनय मैंने क्यों की! खेद केवल यह था कि ज्वालासिंह यहाँ बैठे थे और उनके सामने वह असज्जनता नही प्रकट करना चाहते थे। बोले, अधिकार से मेरा वह आशय नहीं था जो आपने समझा। मैं केवल यह कहना चाहता था कि जब आपने