पृष्ठ:प्रेमाश्रम.pdf/२२८

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
२३३
प्रेमाश्रम

तीसरे दिन रासलीला समाप्त हुई। उसी दिन ज्ञानशकर गायत्री को सग ले बड़े समारोह के साथ वृन्दावन चले।



३५

सेशन जज के इजलास में एक महीने से मुकदमा चल रहा है। अभियुक्त ने फिर सफाई दी। आज मनोहर का बयान था । इजलास में एक मेला सा लगा हुआ था। मनोहर ने बडी निर्भीक दृढता के साथ सारी घटना आदि से अन्त तक बयान की और यदि जनता को अधिकार होता तो अन्य अभियुक्तो का बेदाग छूट जाना निश्चित था, किंतु अदालत जाब्ते और नियमों के बन्धन में जकड़ी हुई थी। वह जान कर अनजान बनने पर बाध्य थी । मनोहर के अन्तिम वाक्य बडे मार्मिक थे—सरकार, माजरा यही हैं जो मैंने आपसे अरज किया । मैंने गौस खाँ को इसी कुल्हाड़ी से और इन्हीं हाथ से मारा । कोई मेरा साथी, सलाहकार, मेरा मददगार नही था । अब आपको अख्तियार है, चाहे सारे गाँव को फाँसी पर चढा दे, चाहे कालेपानी भेज दें, चाहे छोड़ दे। फैजू, बिसेसर, दारोगा ने जो कुछ कहा है, सब झूठ है। दारोगा जी की बात तो मैं नहीं चलाता, पर सरकार, फैजू और बिसेसर को अपने घर पर बुलाये और दिलासा दे कि पुलिस तुम्हारा कुछ न कर सकेगी तो मेरी सच झूठ की परख हो जाय और मैं क्या कहूँ । उन लोगों को काठ का कलेजा होगा जो इतने गरीबो को बेकसूर फाँसी पर चढवाये देते हैं। भगवान झूठ-सच सब देखते हैं। बिसेसर और फैजू की तो थोडी औकात है और दारोगा जी झूठ की रोटी खाते हैं, पर डाक्टर साहब इतने बड़े आदमी और ऐसे बड़े विद्वान् कैसे झूठी गगा में तैरने लगे, इसका मुझे अचरज है। इसके सिवा और क्या कहा जाय कि गरीबो को नसीब ही खोटा है कि बिना कसूर किये फाँसी पाते है। अब सरकार से और पचो से यही विनती है कि तुम इस घडी न्याय के आसन पर बैठे हो, अपने इन्साफ से दूध का दूध और पानी का पानी कर दो।

अदालत उठी। यह दुखियारे हवालात चले। और सभी ने तो मन को समझा लिया था कि भाग्य में जो कुछ बदा है वह हो कर रहेगा, पर दुखरन भगत की छाती पर सॉप लोटता रहता था। उसे रह-रह कर उत्तेजना होती थी कि अवसर पाऊँ तो मनोहर को खूब आडे हाथों लूँ । किंतु मजबूर था, क्योकि मनोहर सबसे अलग रखा जाता था। हाँ, वह बलराज को ताना दे-दे कर अपने चित्त की दाह को शान्त किया करता था । आज मनोहर का बयान सुन कर उसे और भी चिढ हुई । जब चिडिया खेत चुन गयी तो यह हाँक लगाने चले है । उस घडी अकल कहाँ चली गयी थी, जब एक जरा सी बात पर कुल्हाडा बाँध कर घर से चले थे । इस समय मार्ग में उसे मनोहर पर अपना क्रोध उतारने का मौका मिल गया। बोला--आज क्या झूठ-मूठ बकवाद कर रहे थे । आदमी को तीर चलाने के पहले ही सोच लेना चाहिए कि वह किसको लगेगा । जब तीर कमान से निकल गया तो फिर पछताने से क्या होता हैं ? तुम्हारे कारण सारा गाँव