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प्रेमाश्रम

क्या, आज नही कल रॉड होती । तुम्हारे भी खेलने-खाने के दिन होते तो देखती कि अपनी लाज को कितनी प्यारी समझती हो।

विलासी तिलमिला उठी। उस दिन से बहू से बोलना छोड़ दिया, यहाँ तक कि बलराज की भी चर्चा न करती । जिस पुत्र पर जान देती थी, उसके नाम से भी घृणा करने लगी । बहू के इन अरुचिकर शब्दों ने उसके मातृ-स्नेह का अन्त कर दिया, जो २५ साल से जीवन को अवलम्बन और आधार बना हुआ था । कुछ दिनों तक तो उसने मौन रूप से अपना कोप प्रकट किया, किन्तु जब यह प्रयोग सफल होता न दीख पडा तो उसने बहू की निन्दा करनी शुरू की। गॉव मे कितनी ही एसी वृद्ध महिलाएँ थी जो अपनी बहुओ से जला करती थी। उन्हें विलासी मे सहानुभूति हो गयी । शनै शनै यह कैफियत हुई कि विलासी के बरौठे में सासो की नित्य बैंठक होती और बहुओं के खूब दुखडे रोये जाते । उधर बहुओं ने भी अपनी आत्म-रक्षा के लिए एक सभा स्थापित की। इसकी बैठक नित्य दुखरन भगत के वर होती। विलासी की बहू इस सभा की सचालिका थी। इस प्रकार दोनों में विरोध बढने लगा । यहाँ की बाते किसी न किसी प्रकार वहीं जा पहुँचती और वहाँ की बाते भी किन्ही गुप्त दूतो द्वारा यहाँ आ जाती । उनके उत्तर दिये जाते, उत्तरो के प्रत्युत्तर मिलते और नित्य यही कार्यक्रम चलता रहता था। इस प्रश्नोत्तर में जो आकर्षण था, वह अपनी विपत्ति और विडम्बना पर आँसू बहाने में कहाँ था । इस व्यग-संग्राम में एक सजीव आनन्द था । द्वेष की कानाफूसी शायद मधुर गान से भी अधिक शोकहारी होती है।

यहाँ तो यह हाल था, उधर फसल खेतो मे सूख रही थी। मियाँ फैजुल्लाह सूखे खेतो को देख कर खिल जाते थे। देखते-देखते चैत का महीना आ गया। मालगुजारी का तकाजा होने लगा । गॉव के बचे हुए लोग अब चेते । वह भूल से गये थे कि मालगुजारी भी देनी है। दरिद्रता में मनुष्य प्राय. भाग्य का आश्रित हो जाता हैं। फैजुल्लाह ने सख्ती करनी शुरू की। किसी को चौपाल के सामने धूप में खड़ा करते, किसी को मुश्के कस कर पिटवाते । दीन नारियो के साथ और भी पाशविक व्यवहार किया जाता, किसी की चूड़ियाँ तोडी जाती, किसी के जूठे नोचे जाते । इन अत्याचारो को रोकनेवाला अब कौन था ? सत्याग्रह मे अन्याय को दमन करने की शक्ति हैं, यह सिद्धान्त भ्रान्तिपूर्ण सिद्ध हो गया। फैजू जानता था कि पत्थर दबाने से तेल न निकलेगा, लेकिन इन अत्याचारों से उसका उद्देश्य गाँववालो का मान-मर्दन करना था। इन दुष्कृत्यों से उसकी पशुवृत्ति को असीम आनन्द मिलता था ।

धीरे-धीरे जेठ भी गुजरा, लेकिन लमान की एक कौडी न वसूल हुई। खेत मे अनाज होता तो कोई न कोई महाजन खडा हो जाता, लेकिन सूखी खेती को कौन पूछता है ? अन्त में ज्ञानशकर ने वेदखली दायर करने की ठान ली। इसी की देर थी, नालिश हो गयी, किन्तु गाँव में रुपयो का बन्दोबस्त न हो सका । उन्नदारी करने वाला भी कोई न निकला। सबको विश्वास था कि एकतर्फी हिंगरी होगी और सब के सब बेदखल हो जायेंगे । फैजू और कर्तार बगलें बजाते फिरते थे। अब मैदान मार लिया