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प्रेमाश्रम


शंकर चिढ़ कर बोले, जब आपकी समझ मे बात हीं नहीं आती तो मैं क्या करूँ? मैं अपने को दूसरों की निगाह मे गिराना नहीं चाहता।

प्रभाशंकर ने पूछा, क्या अपने भाई की सिफारिश करने से अपमान होता है?

ज्ञानशंकर ने कटू भाव से कहा, सिफारिश चाहे किसी काम के लिए हो, नीची बात है, विशेष करके ऐसे मामले में।

प्रमाशंकर बोले, इसका अर्थ तो यह है कि मुसीबत मे भाई से मदद की आशा न रखनी चाहिए।

‘मुसीबत उन कठिनाइयों का नाम है जो दैवी और अनिवार्य कारणों से उत्पन्न हो, जान-बूझ कर आग में कूदना मुसीबत नहीं है।'

'लेकिन जो जान-बूझ कर आग में कूदे, क्या उसकी प्राण-रक्षा न करनी चाहिए?

इतने में बड़ी बहू दरवाजे पर आ कर खड़ी हो गयी और बोली, चल कर लल्लू (दयाशंकर) को जरा समझा क्यों नही देते? रात को भी खाना नहीं खाया और इस वक्त अभी तक हाथ-मुँह नहीं धोया। प्रभाशंकर खिन्न हो कर बोले, कहाँ तक समझाऊँ? समझाते-समझाते तो हार गया। बेटा! मेरे चित्त की इस समय जो दशा है, वह बयान नहीं कर सकता। तुमने जो बातें कही हैं वह बहुत माकूल हैं, लेकिन मुझ पर इतनी दया करो, आज डिप्टी साहब के पास जरा चले जाओ। मेरा मन कहता है, कि तुम्हारे जाने से कुछ न कुछ उपकार अवश्य होगा।

ज्ञानशंकर बगलें झांक रहे थे कि बड़ी बहू बोल उठी, यह जा चुके। लल्लू कहते थे कि ज्ञानू झूठ भी जा कर कुछ कह दे तो सारा काम बन जाय, लेकिन इन्हें क्या परवा है, चाहे कोई चूल्हे भाड़ में जाय। फँसना होता तो चाहे दौड़-धूप करते भी, बचाने कैसे जायें, हेठी न हो जायगी।

प्रभाशंकर ने तिरस्कार के भाव से कहा, क्या बेबात की बात कही हो? अन्दर जा कर बैठती क्यों नही?

बड़ी बहू ने कुटिल नेत्रों से ज्ञानशंकर को देखते हुए कहा, मैं तो बेलाग बात कहती हैं, किसी को भला लगे या बुरा। जो बात इनके मन में है वह मेरी आँखो के सामने है।

ज्ञानशंकर मर्माहत हो कर बोले, चाचा साहब! आप सुनते हैं इनकी बातें? यह मुझे इतना नीच समझती हैं।

बड़ी बहू ने मुँह बना कर कहा, यह क्या सुनेंगे, कान भी हो? सारी उम्र गुलामी करते कटी, अब भी वही आदत पड़ी हुई है। तुम्हारा हाल मैं जानती हूँ।

प्रभाशंकर ने व्यथित हो कर कहा, ईश्वर के लिए चुप हो। बड़ी बहू त्यौरियां चढ़ा कर बोली, चुप क्यों हुँ, किसी का डर है? यहीं तो जान पर बनी हुई है और यह अपने घमंड में भूले हुए हैं। ऐसे आदमी का तो मुंह देखना पाप है।

प्रभाशंकर ने भतीजे की और दीनता से देख कर कहा, बेटा, यह इस समय आपे में नहीं हैं। इनकी बातों का बुरा नहीं मानना। लेकिन ज्ञानशंकर ने ये बातें न सुनी,