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प्रेमाश्रम

अशक्त पाते थे। इन परिस्थितियों से वह ऐसे उद्विग्न हो रहे थे कि जी चाहता था आत्महत्या कर लें। जिस भवन को वह छह सात वर्षों से एक-एक ईंट जोड़ कर बना रहे थे इस समय वह हिल रहा था और निकट था कि गिर पड़े। उसे सँभालना उनकी शक्ति के बाहर था। शोक मेरे भन्सूबे मिट्टी में मिले जाते हैं। इधर से भी गया। यकायक राय साहब बोले–बेटा, तुम व्यर्थ मुझपर इतना कोप कर रहे हो। मैं इतना क्षुद्द-हृदय नहीं हूँ कि तुम्हें गायत्री की दृष्टि में गिराऊँ। उसकी जायदाद तुम्हारे हाथ लग जाय तो मेरे लिए इससे ज्यादा हर्ष की बात और क्या होगी? लेकिन तुम्हारी चेष्टा उसकी जायदाद ही तक रहती तो मुझे कोई आपत्ति न होती। आखिर वह जायदाद किसी न किसी को तो मिलेगी ही और जिन्हें मिलेगी वह मुझे तुमसे ज्यादे प्यारे नहीं हो सकते। किन्तु मैं उसके सतीत्य को उसकी जायदाद से कहीं ज्यादा बहुमूल्य समझता हूँ और उसपर किसी की लोलुप दृष्टि का पड़ना सहन नहीं कर सकता। तुम्हारी सच्चरित्रता की मैं सराहना किया करता था, तुम्हारी योग्यता और कार्यपटुता का में कायल था, लेकिन मुझे इसका गुमाने भी न था कि तुम इतने स्वार्थ-भक्त हो। तुम मुझे पाखडी और विषयी समझते हो, मुझे इसका जरा भी दुख नहीं है। अनात्मवादियों को ऐसी शंका होनी स्वाभाविक है। किंतु मैं तुम्हें विश्वास दिलाता हैं। कि मैंने कभी सौदर्य को बासना की दृष्टि से नहीं देखा। मैं सौदर्य की उपासना करता हूँ, उसे अपने आत्म-निग्रह का साधन समझता हूँ, उससे आत्म-बल संग्रह करता हूँ, उसे अपनी चेष्टायों की सामग्री नहीं बनाता। और मान लो, मैं विषयी ही सही। बहुत दिन बीत गये हैं, थोड़े दिन और बाकी है, जैसा अब तक रहो वैसा ही आगे भी रहूँगा। अब मेरा सुधार नहीं हो सकता। लेकिन तुम्हारे सामने अभी सारी उम्र पड़ी हुई है, इसलिए मैं तुमसे अनुरोध करता हैं और प्रार्थना करता हूँ कि इच्छा के, कुवासनाओं के गुलाम मत बनो। तुम इस भ्रम में पड़े हुए हो कि मनुष्य अपने भाग्य का विघाता है। यह सर्वथा मिथ्या है। हम तकदीर के खिलौने है, विधाता नहीं। वह हमें अपने इच्छानुसार नचाया करती है। तुम्हें क्या मालूम है कि जिसके लिए तुम सत्यासत्य में विवेक नहीं करते, पुण्य और पाप को समान समझते हो उस शुभ मुहर्त तक सभी विघ्न बाधाओं से सुरक्षित रहेगा? सम्भव है कि ठीक उस समय जब जायदाद पर उसका नाम चढाया जा रहा हो एक फुसी उसका काम तमाम कर दे। यह न समझो कि मैं तुम्हारा बुरा चेत रहा हूँ। तुम्हें आशाओं की असारता का केवल एक स्वरूप दिखाना चाहता हूँ। मैंने तकदीर की कितनी ही लीलाएँ देखी हैं और स्वयं उसका सताया हुआ है। उसे अपनी शुभ कल्पनाओं के साँचे में ढालना हमारी सामर्थ्य से बाहर है। मैं नहीं कहता कि तुम अपने और अपनी सन्तान के हित की चिंता मत करो, धनोपार्जन न करो। नहीं, खूब घन कमाओं और खूब समृद्धि प्राप्त करो, किंतु अपनी आत्मा और ईमान को उसपर बलिवान ने करो। धूर्तता और पाखड, छल और कपट से बचते रहो। मेरी जायदाद २० लाख से कम की मालियत नहीं है। अगर दो-चार लाख कर्ज ही हो जाये तो तुम्हें धबड़ाना नहीं चाहिए। क्या इतनी