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प्रेमाश्रम

से लगा लेगी। आशीर्वाद देंगी। मेरे इन रेशमी कपड़ों की खूब तारीफ करेगी। वह ख्याली पुलाव पकाता, मुस्कुराता हुआ विद्या के कमरे में गया। वहाँ सन्नाटा छाया हुआ था, एक धुंधली सी` दीवालगीर जल रही थी। विद्या पलंग पर पड़ी हुई थी। महरियां नीचे गाना सुनने चली गयी थी। लाला प्रभाशंकर के घर की स्त्रियों को न बुलावा दिया गया था और न वे आयी थी। श्रद्धा अपने कमरे में बैठी हुई कुछ पढ रही थी। माया ने मां के समीप जा कर देखा—उसके बाल बिखरे हुए थे, आँखों से आँसू बह रहे थे, ओंठ नीले पड़ गये थे, मुख निस्तेज हो रहा था। उसने घबरा कर कहा—अम्माँ, अम्माँ! विद्या ने आँखें खोली और एक मिनट तक उसकी ओर टकटकी बांध-कर देखती रहीं मानो अपनी आँखों पर विश्वास नहीं है। तब वह उठ बैठी। माया को छाती से लगा कर उसका निर अचल से ढंक लिया मानो उसे किसी आघात से बचा रही हो और उखड़े हुए स्वर में बोली, आओ मेरे प्यारे लाल! तुम्हे आँख भर देख लूँ। तुम्हारे ऊपर बहुत देर से जी लगा हुआ था। तुम्हें लोग अग्निकुड की ओर ढकेल लिये जाते थे। मेरी छाती घड-घड करती थी! बार-बार पुकारती थी, लेकिन तुम सुनते ही न थे। भगवान् ने तुम्हे बचा लिया। वहीं दोनों के रक्षक है। अब मैं तुम्हें न जाने दूंगी। यहीं मेरी आंखों के सामने बैठो। मैं तुम्हे देखती रहूँगी—देखो, देखो! वह तुम्हें पकड़ने के लिए दौड़ा आता हैं, मैं किवाड बन्द किये देती हूँ। तुम्हारा बाप हैं। लेकिन उसे तुम्हारे ऊपर जरा भी दया नहीं आती। मैं किवाड़ बन्द कर देती हूँ। तुम बैठे रहो।

यह कहते हुए वह द्वार की ओर चली, मगर पैर लड़खड़ाये और अचेत हो कर फर्श पर गिर पड़ी। माया उसकी दशा देख कर और उसकी बहकी-बहकी बाते सुन कर थर्रा गया। मारे भय के वहां एक क्षण भी न ठहर सका। तीर के समान कमरे से निकला और दीवानखाने में आकर दम लिया। ज्ञानशंकर मेहमानों के आदर सत्कार मे व्यस्त थे। उनसे कुछ कहने का अवसर न था। गायत्री चिक की आड़ में बैठी हुई सोच रहीं थीं, इस अलहदीन को कीर्तन के लिए नौकर रख लूँ तो अच्छा हो। मेरे मन्दिर की सारे देश में धूम मच जाय। माया ने आ कर कहा—मौसी जी, आप चल कर जरा अम्माँ को देखिए। न जाने कैसी हुई जाती है। उन्हें डेलिरियम सा हो गया है।

गायत्री का कलेजा सन्न सा हो गया। वह विद्या के स्वभाव से परिचित थी। यह खबर सुन कर उससे कहीं ज्यादा शंका हुई जितनी सामान्य दशा में होनी चाहिए थी। वह कल से विद्या के बदले हुए तेवर देख रही थी। रात की घटना भी उसे याद आयी। वह जीने की ओर चली। माया भी पीछे-पीछे चला। इस कमरे में इस समय कितनी ही चीजें इधर-उधर बिखरी पड़ी थी! गायत्री ने कहा—तुम यही बैठो, नहीं तो इनमे से एक चीज का भी पता न चलेगा। मैं अभी आती हूँ। घबराने की कोई बात नहीं है, शायद उसे बुखार आ गया है।

गायत्री विद्या के कमरे में पहुँची। उसका हृदय वाँसो उछल रहा था। उसे