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प्रेमाश्रम


तेज–हाँ और क्या। सब भ्रम है। अपना कलेजा मजदूत किये रहना।

पद्म—और जो कहीं तुम डर जाओ।

तेजशंकर ने गर्व से हँस कर कहा- मैंने डर को भून कर खा लिया है। वह मैरे पास नही फटक सकता। मैं तो सचमुच प्रेतो से न डरूँ, शंकाओं की कौन चलाये।

पद्म-तो हम लोग अमर हो जायेंगे।'

तेज--अवश्य, इसमें भी कुछ सन्देह है।

दोनो ने इस भाँति निश्चय करके मन्त्र जगाना शुरू किया। जब घर के सब लोग सो, जाते तो दोनो चुपके से निकल जाते और अस्सी घाट पर गंगा के किनारे बैठ कर मन्त्र जाप करते। इस प्रकार उन्तालीस दिनों तक दोनो ने अभ्यास किया। इस विकट परीक्षा में है कैसे पूरे उतरें इसकी व्याख्या करने के लिए एक पोथी अलग चाहिए। उन्हें वह सब विकराल सूरते दिखायी दी, वे सब रोमांचकारी शब्द सुनायी दिये, जिनका उस पुस्तक में जिक्र था। कभी मालूम होता था आकाश फटा पड़ता है, कभी आग की एक लहर सामने आती हुई नजर आती, कही कोई भयंकर राक्षस मुंह से अग्नि की ज्वाला निकालता हुआ उन्हें निगलने को लपकता, लेकिन भय की पराकाष्ठा का नाम साहस है। दोनो लड़के आँखै बन्द किये, नीरव, निश्चल, निस्तब्ध, मूत के समान बैठें रहते। जाप को तो केवल नाम था, सारी मानसिक शक्तियाँ इन शंकाओं को दूर रखने में ही केन्द्रीभूत हो जाती थी। यह भय कि जरा भी चौके, झिझके या विचलित हुए तो तत्क्षण प्राणान्त हो जायेगा उन्हें अपनी जगह पर बांध रहता था। मेरा भाई समीप ही बैठा है, यह विश्वास उनकी दृढ़ता का एक मुख्य कारण था, हालाँकि इस विश्वास से तेजशंकर को उतना ढाढस न होता था जितना पद्मशंकर को। उसे (तेजशंकर को) पद्म पर वह भरोसा न था जो पद्म को उस पर था। अतएव तेजशंकर के लिए यह परीक्षा ज्यादा दुस्साध्य थी, पर यह भय कि मैं जरा भी हिला तो पद्म की जान पर बन जायगी, उस विश्वास की थोड़ी सी कसर पूरी कर देता था। इन दिनो दोनो बहुत दुर्बल हो गये थे, मुख पीले, आँखें चंचल, ओठ सूखे हुए। दोनो सारे दिन संज्ञा-हीन से पड़े रहते, खेल-कूद, सैर-सपाटे, आमोद-विनोद से उन्हें जरा भी रुचि न थी, आठो पहर मन उचटा रहता था यहाँ तक कि भोजन भी अच्छा न लगता। इस तरह उन्तालीस दिन बीत गये, चालीसवाँ दिन आ पहुँचा। आज भोर से ही उनके चित्त उद्विग्न होने लगे, शंकाओं ने उग्र रूप धारण किया, आशाएँ भी प्रबल हुई। दोनो आशा और भय की दशा में बैठे हुए कभी अमरत्व की कल्पना से प्रफुल्लित हो जाते, कभी आज की कठिनतम परीक्षाओं के भय से काँपते, पर आशाएँ भय के ऊपर थी। सारे शहर में हलचल मच जायेगी, हम लोग जलती हुई आग में कूद पड़ेंगे और बेदाग निकल जायेगे, आँच तक न आयेगी। उस मुंडेर पर से निश्शक नीचे कूद पड़ेंगे, जरा भी चोट न लगेगी। लोग देख कर दंग हो जायेगे। दिन भर दोनों ने कुछ नहीं खाया। कभी नीचे जाते, कभी ऊपर जाते, कभी हँसते, कभी रोते, कभी नाचते। कोई दूसरा आदमी उनकी यह दशा देख कर समझता कि पागल हो गये हैं।