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प्रेमाश्रम


माया- यह बाते चचा जी सुनते, तो फुले न समाते।

कल्लू-भैया, जो सच पूछो तो चाँदी मेरी है। एक से राषा हो गया। पहले ६ बीघे का आसामी था, सब सिकमी, ७२ रु० लगान के देने पड़ते थे, उस पर हरदम गौसमियाँ की चिरौरी किया करता था कि कही खेत न छीन ले। ५० रु० खाली नजराना लगता था। पियादो की पूजा अलग करनी पड़ती थीं। अब कुल ९ रु० लगान देता हैं। दो साल में आदमी बन गयो। फूस के झोपड़े में रहता था, अब की मकान बनवा लया है। पहले हरदम घरका लगा रहता था कि कोई कारिन्दे से मेरी चुगली न कर आया हो। अब आनन्द से मीठी नींद सोता हैं और तुम्हारा जस गाता हूँ।

माया--(सुक्खू चौधरी से) तुम्हारी खेती तो सब मजदूरों से ही होती होगी। तुम्हे भजन-भाव से कहीं छुट्टी?

सुक्खू--(हँस कर) भैया, मुझे अब खेती-बारी करके क्या करना हैं। अब तो यही अभिलाषा है कि भगवत-भजन करते-करते यहाँ से सिधार जाऊँ। मैंने अपने चालीसो बीघे उन बेचारो को दे दिये है जिनके हिस्से में कुछ न पड़ा था। इस तरह सात-आठ घर जो पहले मजूरी करते थे और बेगार के मारे मजूरी भी न करने पाते थे, अब भले आदमी हो गये। मेरा अपना निर्वाह भिक्षा से हो जाता है। हाँ, इच्छापूर्ण भिक्षा यही मिल जाती है, किसी दूसरे गाँव में पेट के लिए नहीं जाना पड़ता। दो-चार साधु-संत नित्य ही आते रहते है। उसी भिक्षा में उनका सत्कार भी हो जाता है।

माया–आज बिसेसर साह नही दिखायी देते।

सुक्लू---किसी काम से गये होगें। वह भी अब पहले से मजे में है। दूकान बहुत बढ़ा दी है, लेन-देन कम करते है। पहले रुपये में आने से कम ब्याज न लेते थे। और करते क्या? कितने ही असामियों से कौड़ी वसूल न होती थी। रुपये मारे पड़ते थे। उसकी कसर ब्याज से निकालते थे। अब रुपये सैकड़े व्याज देते हैं। किसी के यहाँ रुपये डूबने का डर नहीं है। दुकान भी अच्छी चलती है। लश्करो मे पहले दिवाला निकल जाता था। अब एक तो गाँव का बल है, कोई रोब नहीं जमा सकता और जो कुछ थोड़ा बहुत घाटा हुआ भी तो गाँववाले पूरा कर देते हैं। इतने में बलराज रेशमी साफा बाँधे, मिर्जेई पहने, घोड़े पर सवार आता दिखायी दिया। मायाशंकर को देखते ही बेधड़क घोड़े पर से कूद पड़ी और उनके चरण स्पर्श किये। वह अब जिला-सभा का सदस्य था। उसी के जल्से से लौटा आ रहा था।

माया ने मुस्करा कर पूछा-कहिए मैम्बर साहब, क्या खबर है।

बलराज-हजूर की दुआ से अच्छी तरह हैं। आप तो मजे में है। बोर्ड के जल्से में गया था। बहस छिड़ गयी, वही चिराग जल गया।

माया-आज बोर्ड में क्या था?

बलराज बही वेगार का प्रश्न छिड़ा हुआ था। खूब गर्मागर्म बहस हुई। मेरा प्रस्ताव था कि जिले का कोई हाकिम देहात में जा कर गांववालों से किसी तरह की खिदमत का काम न ले, जैसे पानी भरना, घास छीलना, झाड़े लगाना। जो रसद