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प्रेमाश्रम

दरकार हो वह गाँव के मुखिया से कह दी जाय और बाजार भाव है उसी दम दाम चुका दिया जाय। इस पर दोनों तहसीलदार और कई हुक्काम बहुत भन्नाये। कहने लगे, इससे सरकारी काम में बड़ा हर्ज होगा। मैंने भी जी तौल कर जो कुछ कहते बना, कहा। सरकारी काम प्रजा को कष्ट दे कर और उनका अपमान करके नहीं होना चाहिए। हर्ज होता है तो हो। दिल्लगी यह है कि कई जमीदार भी हुक्काम के पक्ष में थे। मैंने उन ठोगो की खूब खबर ली। अन्त में मेरा प्रस्ताव स्वीकृत हुआ। देखे। जिलाधीश क्या फैसला करते है। मेरा एक प्रस्ताव यह भी पा कि निर्जनामा लिखने के लिए एक तब-कमेटी बनायी जाय जिसमें अधिकांश व्यापारी लोग हों। यह नहीं कि तहसीलदार ने कलम उठाया और मनमाना निर्ख लिख कर चलता किया। वह प्रस्ताव भी मंजूर हुआ है।

माया--मैं इन सफलताओ पर तुम्हे बघाई देता हूँ।

बलराज--यह सब आपका अकबाल है। यहाँ पहले कोई अखबार का नाम भी न जानता था। अब कई अच्छे अच्छे पत्र भी आते है। सबेरे आपको अपना वाचनालय दिखाऊँगा। गाँव के लोग यथायोग्य १ रु०, २ रु० मासिक चन्दा देते हैं, नही तो पहले हम लोग मिल कर पत्र मगावे थे तो सारा गाँव विदकता था। जब कोई अफसर दौरे पर आता, कारिन्दा साहब चट उससे भेरी शिकायत करते। अब आपकी दया से गाँव में रामराज है। आपको किसी दूसरे गाँव में पूसा और मुजफ्फरपुर का गेहूं न दिखायी देगा। हम लोगों ने अवनी मिल कर दोनों ठिकान है वीज मँगवाये और डेवढ़ी पैदावार होने की पूरी आया है। पहले यही डर के मारे कोई कपास चौता ही न था। मैंने अबकी मालवा और नागपुर से चीज मँगवाये और गांव में बाँट दिये। खूब कपास हुई। यह सव काम गरीब अशामियों के मान के नहीं हैं जिनको पेट भर भोजन तक नहीं मिलता, सारी पैदावार लगान और महाजन के भेद हो जाती है।

यहीं बाते करते-करते भोजन का समय आ पहुँचा। लौर भोजन करने गये। मायाशंकर ने भी पूरियाँ दूध में मल कर खायी, दुध पिया और वही लेटे। थोड़ी देर में लोग खा-पीकर आ गयें। गाने-बजाने की ठहरी। कल्लू ने गाया। कादिर खों में दौ-तीन पद सुनाये। रामायण का पाठ हुआ। सुखदास ने कबीरपन्थी भजन सुनायै। कल्लू ने एक नकल की। दो-तीन घटे खूब चहल-पहल रही। माया को बड़ा आनन्द आया। उसने भी कई अच्छी चीजें सुनायी। लोग उनके स्वर माधुर्यं पर मुग्ध हो गये।

सहसा बलराज ने कहा-बाबू जी आपने सुना नहीं? मिनी फैजुल्ला पर जो मुकदमा चल रहा था, उसका आज फैसला सुना दिया गया। अपनी पडौसिन बुढिया के घर में घुस कर चोरी की थी। तीन साल की सजा हो गयी।

डपटसिंह ने कहा----बहुत अच्छा। सौ बेत पड़ जाते तो और भी अच्छा होता। यह हम लोगों की आह पड़ी है।

माया--बिन्दा महाराज और कर्तासिंह का भी कहीं पता है?

बलराज जी हाँ निन्दा महाराज तो यही रहते हैं। उनके निर्वाह के लिए हम