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प्रेमाश्रम

गौस खाँ–तुम लोगों की यह निहायत बेहुदी आदत हैं कि हर बात मे लाग-डांट करने लगते हो। शराफत और नरमी से आया भी न दोगे, लेकिन सख्ती से पूरा लिए हाजिर हो जाओगे। मैंने तुमसे दो सेर कह दिया है, इतना तुम्हें देना होगा।

डपट-इस तरह आप मालिक हैं, भैसे खोल ले जाइए, लेकिन दो सेर दूध मेरे यहाँ न होगा।

गौस खाँ—मनोहर तुम्हारी भैसे तो दुधार है?

मनोहर ने अभी जवाब न दिया था कि बलराज बोल उठा मेरी भैसे बहुत दुधारे हैं, मन भर दूघ देती हैं, लेकिन बेगार के नाम से छटाँक भर भी न देगी।

मनोहर--तू चुपचाप क्यों नहीं रहता? तुमसे कौन पूछता है? हमसे जितना हो सकेगा देंगे, तुमसे मतलब?

चपरासी ने बलराज की और अपमानजनक क्रोध से देख कर कहा, महतो, अभी इम लोगों के पंजे में नहीं पड़े हो। एक बार पड़ जायोगे तो आटे-दाल का भाव मालूम हो जायगा। मुंह से बाते न निकलेगी।

दूसरा चपरासी--मालूम होता है, सिर पर गरमी बढ़ गयी है तभी इतना ऐठ रहा है। इसे लश्कर ले चलो तो गरमी उतर जाय।

बलराज ने मर्माहत हो कर कहा, मियाँ, हमारी गरमी पाँच-पाँच रुपल्ली के चपरासियों के मान की नहीं है, जाओ, अपने साहब बहादुर के जूते सीधे करो, जो तुम्हारा काम हैं, हमारी गरमी के फेर में न पड़ो, नहीं तो हाथ लग जायेंगे। उस जन्म के पापों का दंड भोग रहे हो, लेकिन अब भी तुम्हारी आँखें नहीं खुलती है।

बलराज ने यह शब्द ऐसी सगर्व गम्भीरता से कहे कि दोनों चपरासी खिसिया-से गये। इस घोर अपमान का प्रतिकार करना कठिन था। यह मानो वाद को वाणी की परिधि से निकाल कर कर्म के क्षेत्र में लाने की ललकार थी। व्यगाघात शाब्दिक कलह की चरम सीमा हैं। उनका प्रतिकार मुँह से नहीं हाथ से होता है। लेकिन बलराज की चौड़ी छाती और पुष्ट भुजदण्ड देख कर चपरामियों को हाथापाई करने का साहस न हो सका। गौस खाँ में गोला, खाँ साहब, आप इस लौड़े को देखते हैं, कैसा बढ़ा जाता है? इसे समझा दीजिए, हमारे मुंह न लगें। ऐसा न हो शामत आ जाये और छह महीने तक चक्की पीसनी पड़े। हम आप लोगों का मुलाहिजा करते हैं, नहीं तो न हेकड़ी का मजा चखा देते।

गौस खाँ-सुनते ही मनोहर, अपने बेटे की बात भला सोचो तो डिप्टी साहब के कानों में यह बात पड़ जाय तो तुम्हारी क्या हाल हो? कही एक पत्ती को साया भी न मिलेगा।

मनोहर ने दीनता से खाँ साहब की ओर देखकर कहा, 'खाँ साहब, मैं तो इसे सब तरह से समझा-बुझा कर हार गया। न जाने क्या हाल करने पर तुला है? (बलराज से) अरे, तू यहां से जाएगा कि नहीं?

बलराज-- क्यों जाऊं, मुझे किसी का डर नहीं हैं। यह लोग डिप्टी साहब से मेरी