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प्रेमाश्रम


शंका हुई, कही डिप्टी साहब इसकी बातो में न आ गये हो। लेकिन जब उसकी बातो से ज्ञान हुआ कि डिप्टी साहब ने उल्टे और फटकार सुनाई तो धैर्य हुआ। बलराज को डॉटने लगे। यह अपने अफसरों के इशारे के गुलाम थे और उन्ही की इच्छानुसार अपने कर्तव्य का निर्माण किया करते थे।

बलराज इस समय ऐसा हताश हो रहा था कि पहले थोड़ी देर तक वह चुपचाप पड़ा ईजाद हुसेन की कठोर बाते सुनता रहा। अत मै गम्भीर भाव से बोला, आप क्या चाहते है कि हम लोगो पर अन्याय भी हो और हम फरियाद भी न करे?

ईजाद हुमेन--फरियाद की मजा तो चख लिया। अब चालान होता है तो देखे कहाँ जाते हो। सरकारी आदमियों से मुजाहिम होना कोई खाली जी का घर नहीं है। डिप्टी साहब को तुम लोगो की सरकशी का रत्ती-रत्ती हाल मालूम है। बाबू ज्ञानशकर ने मारा कच्चा चिट्ठा उनसे क्यान कर दिया है। वह तो मौके की तलाश में थे। आज शाम तक सारा गाँव बँधा जाता है। गौस खों को सीधा पा लिया है, इसी से और हौ गये हो। अव सारी कसर निकल जाती है। इतने बेत पडेगे कि धज्जियाँ उड़ जायेगी।

बलराज-ऐसा कोई अधेर है कि हाकिम लोग बेकसूर किसी को सजा दे दें।

ईजाद हुसेन-हाँ हाँ, ऐसा ही अधेर है। सरकारी आदमियों को हमेशा बेगार मिली है और हमेशा मिलेगी। तुम गाडियाँ न दोगे तो वह क्या अपने सिर पर असबाब लादेगे? हमे जिन जिन चीजों की जरूरत होगी, तुम्ही से ली जायेगी। हँसकर दो या रो कर दो। समझ गये।

इतने में एक चपरासी ने कहा, चलिए, आप को सरकार याद करते हैं। ईजाद हुसेन पान खाए हुए थे। तुरत कुल्ली की, पगडी बाँधी और ज्यालासिंह के सामने जी कर सलाम किया।

ज्वालासिंह ने कहा, मीर साहब, चपरासियों को ताकीद कर दीजिए कि अब से कैम्प के लिए बेगार में गाडियाँ न पकडा करे। आप लोग अपना सामान मेरे ऊँटी पर रख लिया कीजिए। इससे आप लोगो को चाहे थोड़ी सी तकलीफ हो, लेकिन यह मुनासिब नहीं मालूम होता कि अपनी आसाइश के लिए दूसरो पर जत्न किया जाय।

ईजाद हुसैन----हुजूर बहुत वजा फरमाते है। आज से गाडियां पकड़ने की सख्त भुमानियत कर दी जायगी। बेशक यह सरासर जुल्म है।

ज्वालासिंह---चपरासियों से कह दीजिए कि मेरे इजलास के खेमे में रात को सो रहा करे। वेगार में पुआल लेने की जरूरत नहीं। गरीब किसान यही पुआल काटकाट कर जानवरों को खिलाते है, इसलिए उन्हें इसको देना नागवार गुजरता है।

ईजाद हुसैन-हुजूर का फर्माना बजा है। हुक्काम को ऐसा ही गरीबरपरवर होना चाहिए। लोग जमीदारो की सख्तियो से यौ ही परेशान रहते हैं, उस पर हुक्काम की वेगार तो और भी सितम हो जाती है।

ज्वालासिंह के हृदय में ज्ञानशकर के ताने अभी तक खटक रहे थे। यदि थोड़े से कप्ट से उनपर छीटे उझाने को सामग्री हाथ आ जाय तो क्या पूछना। ज्वालासिंह इस द्वेष के आवैग को न रोक सके। एक बार गांव में जा कर उनकी दशा आँखो से देखने का निश्चय किया।