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प्रेमाश्रम

के सम्बन्ध में स्मृतिकारों की व्यवस्था का अवलोकन करने लगे। वह अपनी आशा की पुष्टि और शंकाओं का समाधान करना चाहते हैं। कुछ दिनों तक कानून पढ़ा था, कानूनी किताबों का उनके पास अच्छा संग्रह था। पहले मनुस्मृति खोली, सन्तोष न हुआ। मिताक्षरा का विधान देखा, शंका और भी बढ़ी। याज्ञवल्क्य ने भी विषय ने भी कुछ संतोषप्रद स्पष्टीकरण न किया। किसी वकील की सम्मति आवश्यक जान पड़ी। वह उतने उतावले हो रहे थे कि तत्काल कपड़े पहन कर चलने को तैयार गये। कहार से कहा, माया को ले जा, बाजार की सैर करा ला। कमरे से बाहर निकले ही थे की याद आया, तार का जवाब नहीं दिया। फिर कमरे में गये, समवेदना का तार लिखा, इतने में लाला प्रभाकर और दयाशंकर आ पहुँचे, ज्ञानशंकर को इस समय उनका आना जहर-सा लगा। प्रभाशंकर बोले, मैंने तो अभी सुना। सन्नाटे में आ गया। बेचारे रायसाहब को बुढ़ापे में यह बुरा धक्का लगा। घर ही वीरान हो गया है।

ज्ञानशंकर—ईश्वर की लीला विचित्र है।

प्रभाकर—अभी उम्र ही क्या थी। बिलकुल लड़का था। तुम्हारे विवाह में देखा था, चेहरे में तेज बरसता था। ऐसा प्रतापी लड़का को मैंने नहीं देखा।

ज्ञानशंकर—इसी से तो ईश्वर के न्याय विघान पर ने विश्वास उठ जाता है।

दयाशंकर—आपकी बड़ी साली के तो कोई लड़की नहीं है न?

ज्ञानशंकर ने विरक्त भाव में कहा, नहीं।

दयाशंकर—तब तो चाहे माया ही वारिस हो।

ज्ञानशंकर ने उन तिरस्कार करते हुए कहा, कैसी बात करते हो? कहाँ कौन-सी बात, कहाँ कौन-सी बात, ऐसी बातों का यह ममय नहीं है।

दयाशंकर लज्जिन हो गये। ज्ञानशंकर को अब यह विलम्ब असह्य होने लगा। पैरगाड़ी उठाई और दोनों आदमियों को बरामदे में ही छोड़ कर डाक्टर इरफानअली के बंगले की ओर चल दिये, जो नामी बैरिस्टर थे।

बैरिस्टर साहब का बंगला खूब सजा हुआ था। शाम हो गयी थी, वह हवा खाने जा रहे थे। मोटर तैयार थी, लेकिन मुवक्किलों से जान न छूटती थी, वह इस समय अपने ऑफिस में आराम कुर्सी पर लेते हुआ सिगार पी रहे थे। मुवक्किल लोग दूसरे कमरे में बैठे थे। वह बारी-बारी से डॉक्टर साहब के पास आकर अपना वृतांत कहते जाते थे। ज्ञानशंकर को बैठे-बैठे आठ बज गए। तब जाकर उनकी बारी आई। उन्होंने ऑफिस में जाकर अपना मामला सुनाना शुरू किया। क्लर्क ने सब बातें उनकी नोट कर लीं। इनकी फीस 5 रुपए हुई। डॉक्टर साहब सम्मति के लिए दूसरे दिन बुलाया। उसकी फीस 500 रुपए थी। यदि उस सम्मति पर कुछ शंकाएं हों तो उसके समाधान के लिए प्रति घंटा 200 रुपये देने पड़ेंगे। ज्ञानशंकर को मालूम नहीं था कि डॉक्टर साहब के समय का मूल्य इतना अधिक है। मन में पछताएं कि नाहक इस झमले में फंसा। क्लर्क की