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प्रेमाश्रम


बिसेसर साह की आँखें खुली। और लोग भी चकराए। कादिर खाँ की यह युक्ति काम कर गयी। लोग समझ गये कि हम लोग बुरे फंस गये हैं और किसी तरह निकल नहीं सकते। बिसेसर का मुँह ऐसा लटक गया मानों रुपये की थैली गिर गयी हो। बोले, दारोगा जी ऐसे आदमी तो नहीं जान पड़ते। कितना ही है तो हमारे मालिक हैं, कुछ न कुछ मुलाहिजा तो करेंगे ही, लेकिन किसी के मन का हाल परमात्मा ही जान सकता है। कौन जाने, उनके मन में कपटे समा जाये। तब तो हमारा सत्यानाश ही हो जायें। तो यही सलाह पक्की कर लो कि न बयान बदलेंगे, न दारोगा जी के पास जायेंगे। अब तो जाल में फँस गये हैं! फड़फड़ाने से फँदें और भी बंद हो जायेंगे। चुपचाप राम आसरे बैठे रहना ही अच्छा है।

इम प्रकार आपस में सलाह करके लोग अपने-अपने घर गये। कादिर खाँ की व्यवहार पटुता ने विजय पायी।

बाबू दयाशंकर नियमानुसार आठ बजे सो कर उठे और रात की खुमारी उतारने के बाद इन लोगों की राह देखने लगे। जब नौ बजे तक किसी की सूरत न दिखायीं दी तो गौस खाँ से बोले, कहिए ख़ाँ साहब, यह सब न आयेंगे क्या? देर बहूत हुई।

गौस खाँ–क्या जाने कल सबों में क्या मिस्कौट हुई। क्यों मुक्खू, रात मनोहर तुम्हारे पास आया था न?

भुक्नु-हाँ आया तो था, पर कुछ मामले की बातचीत नहीं हुई। कादिर मियाँ बड़ी रात तक सब के घर-घर घूमते रहे। उन्होनें सबों को मंत्र दिया होगा।

गौस खाँ–जरूर उनकी शरारत है। कल पहर रात तक सब लोग बयान बदलने पर आमादा थे। मालूम होता है जब लौग यहाँ से गये हैं तो उसे पट्टी पढ़ाने का मौका मिल गया। मैं जानता तो सबों को यही बुलाता। यह मलऊन कभी अपनी हरकत से बाज नहीं आता। हमेशा बाजी मारा करता है।

दया----अच्छी बात है, तो मैं अब रिपोर्ट लिख डालता हूं। मुझे गाँववालों की तरफ से किसी किस्म की ज्यादती का सबूत नहीं मिलता।

गौम खाँ-हुजूर, खुद के लिए ऐसी रिपोर्ट न लिखें, वरना यह सब और शेर हो जायेंगे। हुजूर, महज अफसर नहीं है, मेरे आका भी तो हैं। गुलाम ने बहुत दिनों तक हुजूर का नमक खाया है। ऐसा कुछ कीजिए कि यहाँ मेरा रहना दुश्वार न हो जाय। मैं तो हुजूर और बाबू ज्ञानशंकर को एक ही समझता हूँ। मैं यही चाहता हूँ कि बलराज को कम से कम एक माह की सजा हो जाय और बाकी से मुचलका ले लिया जाय। यह इनायत खास मुझ पर होगी। मेरी धाक बँध जायगी और आइदा में हुक्काम की बेगार में जरा भी दिक्कत न होगी।

दयाशंकर---आपका फरमाना बजा हैं, पर मैं इस वक्त न अपके पास आका की हैसियत में हूँ और न मेरा काम हुक्काम के लिए बेगार पहुँचाना है। मैं तशवीश करने आया हूँ और किसी के साथ रू-रियायत नहीं कर सकता। यह तो आप जानते ही हैं कि मैंने मुफ्त में कलम उठाने का सबक नही पढ़ा। किसी पर जब्र नहीं करता,