पृष्ठ:प्रेम-द्वादशी.djvu/१२९

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डिक्री के रुपये

चिन्ह न दिखाई दिया। वह अविचल खड़ा रहा। कैलास ने बहुत डरते-डरते यह प्रश्न किया था, उसको भय था, कि नईम इसका कुछ जवाब न दे सकेगा। कदाचित् रोने लगेगा; लेकिन नईम ने निःशंक भाव से कहा—संभव है, आपने स्वप्न में मुझसे यह बातें सुनी हों।

कैलास एक क्षण के लिए दंग हो गया। फिर उसने विस्मय से नईम की ओर नज़र डाल कर पूछा—क्या आपने यह नहीं फरमाया, कि मैंने दो-चार अवसरों पर मुसलमानों के साथ पक्षपात किया है, और इसीलिए मुझे हिन्दू-विरोधी समझकर इस अनुसंधान का भार सौंपा गया है?

नईम ज़रा भी न झिझका। अविचल, स्थिर और शांत भाव से बोला—आपकी कल्पना-शक्ति वास्तव में आश्चर्य-जनक है। बरसों तक आपके साथ रहने पर भी मुझे यह विदित न हुआ था, कि आप में घटनाओं का आविष्कार करने की ऐसी चमत्कार-पूर्ण शक्ति है।

कैलास ने और कोई प्रश्न न किया। उसे अपने पराभव का दुःख न था, दुःख था नईम की आत्मा के पतन का। वह कल्पना भी न कर सकता था, कि कोई मनुष्य अपने मुँह से निकली हुई बात को इतनी ढिठाई से अस्वीकार कर सकता है, और वह भी उसी आदमी के मुँह पर, जिससे वह बात कही गई हो। यह मानवीय दुर्बलता की पराकाष्ठा है। वह नईम, जिसका अंदर और बाहर एक था, जिसके विचार और व्यवहार में भेद न था, जिसकी वाणी आंतरिक भावों का दर्पण थी, वह नईम वह सरल, आत्माभिमानी, सत्य-भक्त नईम; इतना धूर्त, ऐसा मक्कार हो सकता है! क्या दासता के साँचे में ढलकर मनुष्य अपना मनुष्यत्व भी खो बैठता है? क्या यह दिव्य गुणों के रूपांतरित करने का यंत्र है?

अदालत ने नईम को बीस हज़ार रुपयों की डिक्री दे दी। कैलास पर मानो वज्रपात हो गया।

(६)

इस निश्चय पर राजनीतिक-संसार में फिर कुहराम मचा। सरकारी पक्ष के पत्रों ने कैलास को धूर्त कहा; जन-पक्षवालों ने नईम को शैतान बनाया। नईम के दुस्सहाय ने न्याय की दृष्टि में चाहे उसे निरपराध