हरिहर--कहो, तो कुछ उताजोग करूँ ?
झींगुर--क्या करोगे ? इसी डर से तो वह गाय-भैंस नहीं पालता।
हरिहर--भेड़ें तो हैं ?
झींगुर--क्या बगला मारे पखना हाथ ।
हरिहर-फिर तुम्हीं सोचो।
झींगुर--ऐसी जुगुत निकालो, कि फिर पनपने न पावे ।
इसके बाद फुस-फुस करके बात होने लगी। यह एक रहस्य है, कि भलाइयों में जितना द्वेष होता है, बुराइयों में उतना ही प्रेम । विद्वान् विद्वान् को देखकर, साधु साधु को देखकर और कवि कवि को देखकर जलता है । एक दूसरे की सूरत नहीं देखना चाहता ; पर जुआरी जुआरी को देखकर, शराबी शराबी को देखकर, चोर चोर को देखकर सहानुभूति दिखाता है, सहायता करता है। एक पण्डित अगर अँधेरे में ठोकर खाकर गिर पड़े, तो दूसरे पंडितजी उन्हें उठाने के बदले दो ठोकरें और लगावेंगे, कि वह फिर उठ ही न सके ; पर एक चोर पर अाफ़त आई देख, दूसरा चोर उसकी आड़ कर लेता है। बुराई से सब घृणा करते हैं; इसलिये बुरों में परस्पर प्रेम होता है । भलाई की सारा संसार प्रशंसा करता है ; इसलिए भलों में विरोध होता है । चोर को मारकर चोर क्या पावेगा ? घृणा । विद्वान् का अपमान करके विद्वान् क्या पावेगा ? यश ।
झींगुर और हरिहर ने सलाह कर ली ;षड्यन्त्र रचने की विधि सोची गई । उसका स्वरूप, समय और क्रम ठीक किया। झींगुर चला, तो अकड़ा जाता था । मार लिया दुश्मन को, अब कहाँ जाता है !
( ५ )
दूसरे दिन झींगुर काम पर जाने लगा, तो पहले बुद्धू के घर पहुँचा। बुद्धू ने पूछा-क्यों, आज नहीं गये क्या ?
झींगुर--जा तो रहा हूँ। तुमसे यही कहने पाया था, कि मेरी बछिया को अपनी भेड़ों के साथ क्यों नहीं चरा दिया करते ? बेचारी खूँटे से बँधी-बंधी मरी जाती है । न घास, न चारा । क्या खिलावे ?
बुद्धू--भैया, मैं गाय-भैंस नहीं रखता । चमारों को जानते हो