सामग्री पर जाएँ

पृष्ठ:प्रेम-द्वादशी.djvu/२२

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
१७
शांति

का और भी अधिक प्रभाव पड़ा है । तुमने अपने को ऊपरी बनाव-चुनाव और विलास के भँवर में डाल दिया है, और तुम्हें उसकी लेशमात्र भी सुध नहीं है । अब मुझे पूर्ण विश्वास हो गया, कि सभ्यता, स्वेच्छाचारिता का भूत स्त्रियों के कोमल हृदय पर बड़ी सुगमता से कब्जा कर सकता है। क्या अब से तीन वर्ष पूर्व भी तुम्हें यह साहस हो सकता था, कि मुझे इस दशा में छोड़कर किसी पड़ोसिन के यहाँ गाने-बजाने चली जातीं ? मैं बिछौने पर पड़ा रहता, और तुम किसी के घर जाकर कलोलें करती ? स्त्रियों का हृदय आधिक्य-प्रिय होता है ; परन्तु इस नवीन प्राधिक्य के बदले मुझे वह पुराना आधिक्य कहीं ज्यादा पसन्द है । उस आधिक्य का फल आत्मिक एवं शारीरिक अभ्युदय और हृदय की पवि- त्रता थी ; पर इस आधिक्य का परिणाम है छिछोरापन, निर्लज्जता, दिखावा और स्वेच्छाचार । उस समय यदि तुम इस प्रकार मिस्टर दास के सम्मुख हँसती-बोलतीं, तो मैं या तो तुम्हें मार डालता, या स्वयं विष-पान कर लेता ; परन्तु बेहयाई ऐसे जीवन का प्रधान तत्त्व है । मैं सब कुछ स्वयं देखता और सहता कदाचित् सहे भी जाता, यदि इस बीमारी ने मुझे सचेत न कर दिया होता । अब यदि तुम यहाँ बैठी भी रहो, तो मुझे सन्तोष न होगा ; क्योंकि मुझे यह विच दुखित करता रहेगा, कि तुम्हारा हृदय यहाँ नहीं है । मैंने अपने को उस इन्द्र- जाल से निकालने का यह निश्चय कर लिया है, जहाँ धन का नाम मान है,इन्द्रिय-लिप्सा का सभ्यता और भ्रष्टता का विचार-स्वातंत्र्य । बोलो, मेरा प्रस्ताव स्वीकार है ?

मेरे हृदय पर वज्रपात-सा हो गया । बाबूजी का अभिप्राय पूर्णतया हृदयंगम हो गया । अभी हृदय में कुछ पुरानी लज्जा बाकी थी। यह यंत्रणा असह्य हो गई । लज्जा पुनर्जीवित हो उठी । अन्तरात्मा ने कहा- अवश्य ! मैं अब वह नहीं हूँ, जो पहले थी। उस समय मैं इनको अपना इष्टदेव मानती थी, इनकी अाज्ञा शिरोधार्य थी ; पर अब वह मेरी दृष्टि में एक साधारण मनुष्य हैं। मिस्टर दास का चित्र मेरे नेत्रों के सामने खिंच गया। कल मेरे हृदय पर इस तरात्मा की बातों का कैमा नशा ला