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बैंक का दिवाला


महिलाओं के सामने हम शील और संकोच के पुतले बन जाते हैं। साईंदास बंगाली बाबू की ओर क्रूर-कठोर दृष्टि से देखकर बोले—काग़ज़ों की जाँच कोई आवश्यक बात नहीं है, केवल हमको विश्वास होना चाहिये।

बंगाली बाबू—डाइरेक्टर लोग कभी न मानेगा।

साईंदास—हमको इसकी परवाह नहीं; हम अपनी जिम्मेदारी पर रुपए दे सकते हैं।

रानी ने साईंदास की ओर कृतज्ञता-पूर्ण दृष्टि से देखा। उनके होठों पर हल्की मुसकिराहट दिखलाई पड़ी।

(३)

परन्तु डाइरेक्टरों ने हिसाब-किताब, आय-व्यय देखना आवश्यक समझा, और यह काम लाला साईंदास के ही सिपुर्द हुआ; क्योंकि और किसी को अपने काम से फुर्सत न थी, कि वह एक पूरे दफ्तर का मुआइना करता। साईंदास ने नियम-पालन किया। तीन-चार दिन तक हिसाब जाँचते रहे, तब अपने इतमीनान के अनुकूल रिपोर्ट लिखी। मामला तय हो गया। दस्तावेज़ लिखा गया, रुपये दे दिये गये। नौ रुपये सैकड़े ब्याज ठहरा।

तीन साल तक बैंक के कारोबार में अच्छी उन्नति हुई। छठे महीने बिना कहे-सुने पैंतालीस हजार रुपयों की थैली दफ़्तर में आ जाती थी। व्यवहारियों को पाँच रुपये सैकड़े ब्याज दे दिया जाता था। हिस्सेदारों को सात रुपए सैकड़े लाभ था।

साईंदास से सब लोग प्रसन्न थे। सब लोग उनकी सूझ-बूझ की प्रशंसा करते थे। यहाँ तक कि बंगाली बाबू भी धीरे-धीरे उनके कायल होते जाते थे। साईंदास उनसे कहा करते—बाबूजी, विश्वास संसार से न कभी लुप्त हुआ है, और न होगा। सत्य पर विश्वास रखना प्रत्येक मनुष्य का धर्म है। जिस मनुष्य के चित्त से विश्वास जाता रहता है, उसे मृतक समझना चाहिये। उसे जान पड़ता है, मैं चारों ओर