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प्रेम-द्वादशी

प्रेम-द्वादशी शत्रुओं से घिरा हुआ हूँ। बड़े-से-बड़े सिद्ध-महात्मा भी इसे रँगे-सियार जान पड़ते हैं। सच्चे-से-सच्चे देश-प्रेमी उसकी दृष्टि में अपनी प्रशंसा के भूखे ही ठहरते हैं। संसार उसे सीधे और छल से परिपूर्ण दिखाई देता है। यहाँ तक कि उसके मन से परमात्मा पर श्रद्धा और भक्ति लुप्त हो जाती है। एक प्रसिद्ध फिलॉस्फर का कथन है, कि प्रत्येक मनुष्य को, जब तक कि उसके विरुद्ध कोई प्रत्यक्ष प्रमाण न पाओ, भल मानस समझो। वर्तमान शासन-प्रथा इसी महत्त्व-पूर्ण सिद्धान्त पर गठित है। और, घृणा तो किसी से करनी ही न चाहिये। हमारी आत्माएँ पवित्र हैं। उनसे घृणा करना परमात्मा से घृणा करने के समान है। यह मैं नहीं कहता, कि संसार में कपट-छल है ही नहीं। है, और बहुत अधिकता से है; परन्तु उसका निवारण अविश्वास से नहीं, मानव-चरित्र ज्ञान से होता है, और यह एक ईश्वर-दत्त गुण है। मैं यह दावा तो नहीं करता; परन्तु मुझे विश्वास है, कि मैं मनुष्य को देखकर उसके आंतरिक भावों तक पहुँच जाता हूँ। कोई कितना ही वेष बदले, रंग रूप सँवारे; परन्तु मेरी अन्तर्दृष्टि को धोका नहीं दे सकता। यह भी ध्यान रखना चाहिये, कि विश्वास से विश्वास उत्पन्न होता है, और अविश्वास से अविश्वास। यह प्राकृतिक नियम है। जिस मनुष्य को आप शुरू से ही धूर्त, कपटी, दुर्जन समझ लेंगे, वह कभी आपसे निष्कपट व्यवहार न करेगा। वह एकाएक आपको नीचा दिखाने का यत्न करेगा। इसके बिपरीत आप एक चोर पर भी भरोसा करें, तो वह आपका दास हो जायगा। सारे संसार को लूटे; परन्तु आपको धोका न देगा। वह कितना ही कुकर्मी, अधर्मी क्यों न हो; पर श्राप उसके गले में विश्वास की जंजीर डालकर उसे जिस ओर चाहें ले जा सकते हैं। यहाँ तक कि वह आपके हाथों पुण्यात्मा भी बन सकता है।

बंगाली बाबू के पास इन दार्शनिक तर्कों का कोई उत्तर न था।

(४)

चौथे वर्ष की पहली तारीख थी। लाला साईंदास बैंक के दफ्तर में बैठे डाकिये की राह देख रहे थे। आज बरहल से पैंतालीस हज़ार रुपये