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प्रेम-द्वादशी

में विभिन्न किंवदन्तियाँ प्रचलित हैं। कोई कहता है, उसका रत्नजटित पिंजड़ा स्वर्ग को चला गया; कोई कहता है यह 'सत्त गुरुदत्त' कहता हुआ अन्तर्धान हो गया; पर यथार्थ यह है कि उस पक्षी-रूपी चन्द्र को किसी बिल्ली-रूपी राहु ने ग्रस लिया। लोग कहते हैं, आधी रात को अभी तक तालाब के किनारे आवाज़ आती है—

'सत्त गुरुदत्त शिवदत्त दाता,
राम के चरन में चित्त लागा।'

महादेव के विषय में भी कितनी जन-श्रुतियाँ हैं। उनमें सबसे मान्य यह है, कि आत्माराम के समाधिस्थ होने के बाद वह कई संन्यासियों के साथ हिमालय चला गया, और वहाँ से लौटकर न आया । उसका नाम आत्माराम प्रसिद्ध हो गया।