लीं। बादशाह को भी ऐसा मालूम हुआ कि राजा ने मुझ पर व्यंग्य किया। उनके तेवर बदल गए। अँगरेजों और अन्य सभासदों ने इस प्रकार काना-फूसी शुरू की, जैसे कोई महान् अनर्थ हो गया हो। राजा साहब के मुँँह से अनर्गल शब्द अवश्य निकले थे। इसमे कोई संदेह नहीं था। संभव है, उन्होंने जान- बूझकर व्यंग्य न किया हो, उनके दुःखी हृदय ने साधारण चेतावनी को यह तीव्र रूप दे दिया हो; पर बात बिगड़ ज़रूर गई थी। अब उनके शत्रु उन्हे कुचलने के ऐसे सुदर अवसर को हाथ से क्यो जाने देते?
राजा साहब ने सभा का यह रंग देखा, तो ख़ून सर्द हो गया। समझ गए, आज शत्रुओ के पंजे में फँस गया, और ऐसा बुरा फँसा कि भगवान् ही निकाले, तो निकल सकता हूँ।
बादशाह ने कोतवाल से लाल आँखे करके कहा―“इस नमकहराम को कैद कर लो, और इसी वक्त़ इसका सिर उड़ा दो। इसे मालूम हो जाय कि बादशाहों से बेअदबी करने का क्या नतीजा होता है।”
कोतवाल की सहसा ’जेनरल’ पर हाथ बढ़ाने की हिम्मत न पड़ी। रोशनुद्दौला ने उससे इशार से कहा―“खड़े सोचते क्या हो, पकड़ लो, नहीं तो तुम भी इसी आग में जल जाओगे।”
झट कोतवाल ने आगे बढ़कर वख्तावरसिंह को गिरपतार कर लिया। एक क्षण में मुश्के कस दी गई। लोग उन्हें चारो ओर से घेरकर कत्ल करने ले चले।