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राज्य-भक्त

इससे तो कही अच्छा यही था कि राजा साहब ही की जान जाती। खानदान की बेइज्जती तो न होती, महिलाओं का अप- मान तो न होता, दरिद्रता की चोटे तो न सहनी पड़ती! विकार को निकलने का मार्ग नहीं मिलता, तो वह सारे शरीर में फैल जाता है। राजा के प्राण तो बचे, पर सारे खानदान को विपत्ति में डालकर!

रोशनुद्दौला को मुँँह-माँगी मुराद मिली। उसकी ईर्षा कभी इतनी संतुष्ट न हुई थी। वह मग्न था कि आज वह काँटा निकल गया, जो बरसों से हृदय में चुभा हुआ था। आज हिंदू- राज्य का अंत हुआ। अब मेरा सिक्का चलेगा। अब मैं समस्त राज्य का विधाता हूँगा। संध्या से पहले ही राजा साहब की सारी स्थावर और जंगम संपत्ति कुर्क हो गई। वृद्ध माता-पिता, सुकोमल रमणियाँ, छोटे-छोटे बालक, सब-के-सब जेल में कैद कर दिए गए। कितनी करुण दशा थी! वे महिलाएँँ, जिन पर कभी देवताओं की भी निगाह न पड़ी थी, खुले मुँह, नंगे पैर, पाँव घसीटती, शहर की भरी हुई सड़कों और गलियों से होती हुई, सिर झुकाए, शोक-चित्रों की भाँति, जेल की तरफ चली जाती थी। सशस्त्र सिपाहियों का एक बड़ा दल साथ था। जिस पुरुष के एक इशारे पर कई घंटे पहले सारे शहर में हलचल मच जाती, उसी के ख़ानदान की यह दुर्दशा!

( २ )

राजा बख्तावरसिंह को बंदी-गृह में रहते हुए एक मास बीत