पृष्ठ:प्रेम पूर्णिमा.pdf/१०७

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प्रेम-पूर्णिमा था, यह असम्भव है, कि रूपचन्द जैसा शिक्षित व्यकि ऐसा दूषित कर्म करे। पुलिसका यह बयान है तो हुआ करे। गवाह पुलिसके-बयानका समर्थन करते हैं तो किया करें। यह पुलिसका अत्याचार है, अन्याय है। कोई कहता था, भाई सत्य तो यह है कि यह रूप लावण्य, यह 'खजन गंजन नयन' और यह हृदय- हारिणी सुन्दर सलोनी छबि जो कुछ न करे वह थोड़ा है। श्रोता इन बातोंको बड़े चावसे इस तरह आश्चर्यान्वित हो मुंह बनाकर सुनते थे, मानो देववाणी हो रही है। सबकी जीभपर यही चर्चा थी। खुब नमक मिर्च लपेटा जाता था । परन्तु इसमें सहानुभूति या समवेदना के लिये जरा भी स्थान न था। [६] पण्डित कैलासनाथका बयान खतम हो गया और कामिनी इजलासपर पधारी। इसका बयान बहुत संक्षिप्त था- मैं अपने कमरेमें रातको सो रही थी। कोई एक बजेके करीब चोर-चोरका इल्ला सुनकर मैं चौंक पड़ी और अपनी चारपाईके पास चार आदमियोंको हाथापाई करते देखा। मेरे भाई साहब अपने दो चैकीदारोंके साथ अभियुक्तको पकड़ते थे और वह जान छुड़ा- कर भागना चाहता था। मैं शीघ्रतासे उठकर बरामदे में निकल पायी। इसके बाद मैंने चौकीदारोंको अपराधीके साथ पुलिस स्टेशनकी ओर जाते देखा। रूपचन्दने कामिनीका बयान सुना और एक ठपढी साँस ली। नेत्रोंके आगेसे परदा हट गया। कामिनी, तू ऐसी कृतघ्न ऐसी अन्यायी, ऐसी पिशाचिनी, ऐसी दुरात्मा है! क्या तेरी