पृष्ठ:प्रेम पूर्णिमा.pdf/११

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

ईश्वरीय न्याय मेरा कोई कागज मत छना, नही तो बुरा होगा ; तुम विषैले सॉप हो। मैं तुम्हारा मुंह नहीं देखना चाहती। मुन्शीजी कागजमें कुछ काट डॉट करना चाहते थे; पर विवश हो गये। खजानेकी कुञ्जी निकालकर फेंक दी, बही खाते पटक दिये, किवाड़ धड़ाकेसे बन्द किये और बाकी तरह सन्नसे निकल गये। कपटमे हाय तो डाला, पर कपट-मन्त्र न जाना। दूसरे कारिन्दोंने यह कैफियत सुनी तो फूले न समाये । मुन्धी जीके सामने उनकी दाल न गलते पाती थी। भानु वरिके पास आकर वे आगपर तेल छिडकने लगे| सब लोग इस विषयमें सहमत थे कि मुन्शी सत्यनारायणने विश्वासघात किया है। मालिक का नमक उनकी हड्डियोंसे फूट फूटकर निकलेगा । दोनों ओरसे मुकद्दमेबाजीकी तैयारियों होने लगी। एक तरफ न्यायका शरीर था , दूसरी ओर न्यायको आत्मा। प्रकृतिको पुरुषसे लड़नेका साहस हुआ था। भानुकुंवरिने लाला छक्कनलालसे पूछा- हमारा वकील कौन है? छक्कनलालने इधर-उधर झाँककर कहाँ-वकील तो सेठजी है; पर सत्यनारायणने उन्हे पहलेसे ही गॉठ रखा होगा। इस मुकद्दमेके लिए बड़े होशियार वकीलकी जरूरत है। मेहरा बाबू- की आजकल खूब चल रही है। हाकिमौकी कलम पकड़ लेते हैं । बोलते हैं तो जैसे मोटरकार छुट गयी। सरकार, और क्या कहे कई आदमियोंको फॉसीसे उतार लिया है। उनके सामने कोई वकील जबान तो खोल ही नहीं सकता। सरकार कहें तो वही कर लिये जायें।