पृष्ठ:प्रेम पूर्णिमा.pdf/१२

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८ प्रम-पूर्णिमा छक्कनलालकी अत्युक्तिने सन्देह पैदा कर दिया। भानुकु- वरिने कहा- नही पहले सेठजीसे पूछ लिया जाय। इसके बाद देखा जायगा | आप जाइये, उन्हें बुला लाइये। छक्कनलाल अपनी तकदीरको ठोकते हुए सेठजीके पास गये। सेठजी पण्डित भृगुदत्त के जीवन-काल हीसे उनके कानून-सम्बन्धी सब काम किया करते थे, मुकद्दमेका हाल सुना तो सन्नाटेमें आ गये। सत्यनारायणको वह बहा नेकनीयत आदमी समझते थे। उनके पतनपर बड़ा खेद किया। उसी वक्त आये। भानुकुवरिने रो-रोकर उनसे अपनी विपत्तिकी कथा कही और अपने दोनों लड़कोंको उनके सामने खडा करके बोली--आप इन अनायोंकी रक्षा कीजिये । इन्हें मै आपको सौपती हूँ। सेठजीने समझौतेकी बात छेड़ी। बोले-आपसको लड़ाई अच्छी नही। भानुकुवरि---अन्यायीके साथ लड़ना अच्छा है सेठजी--पर हमारा पक्ष तो निर्बल है। भानुकुवरि फिर परदेसे निकल आयी और विस्मित होकर बोली--क्या हमारा पक्ष निर्बल है ! दुनिया जानती है कि गाँव हमारा है । उसे हमसे कौन ले सकता है ? नहीं, मै सुलह कभी न करूंगी। आप कागजोंको देस्ते । मेरे बच्चोंकी खातिर यह कष्ट उठाये । आपका परिश्रम निष्फल न जायगा। सत्यनारायणकी नीयत पहले खराब न थी। देखिये, जिस मितीमे गॉव लिया गया है उस मितीमे ३० हजारका क्या खर्च दिखाया गया है ! अगर उसने अपने नाम उधार लिखा हो तो देखिये, वार्षिक सूद चुकाया गया या नहीं। ऐसे नर-पिशाचसे मै कभी सुलह न करूँगी।