पृष्ठ:प्रेम पूर्णिमा.pdf/११०

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प्रेम-पूर्णिमा है। अपराध स्वीकार करनेसे उसका दण्ड कम नहीं होता । अतः मै उसे ५ वर्षके सपरिश्रम कारावासकी सजा देता हूँ। दो हजार मनुष्योंने हृदय थामकर फैसला सुना। मालूम होता था कि कलेजे में भाले चुभ गये हैं। सभीका मुँह निराशा. जनक क्रोधसे रक्तवर्ण हो रहा था। यह अन्याय है, कठोरता है और बेरहमी है । परन्तु रूपचन्दके मुँहपर शान्ति विराज रही थी। दुर्गाका मन्दिर- [१] बाबू ब्रजनाथ कानून पढ़ने में मम थे और उनके दोनों बच्चे लड़ाई करनेमें। श्यामा चिल्लाती थी कि मुन्नू मेरी गुड़िया नहीं देता । मुन्न रोता था कि श्यामाने मेरी मिठाई खा ली। ब्रजनायने क्रुद्ध होकर मौमासे कहा-तुम इन दुष्टोंको यहाँसे हटाती हो कि नहीं, नहीं तो मै एक-एककी खबर लेता हूँ। भामा चूल्हेमें आग जला रही थी, बोली-अरे तो अब क्या सन्ध्याको भी पढ़ते ही रहोगे ? जरा दम तो ले लो। ब्रजनाथ-उठा तो न जायगा; बैठी बैठी वहीसे कानून बघार रही हो। अभी एक-आधको पटक दूंगा तो वहॉसे गरजती हुई आओगी कि हाय ! हाय ! बच्चेको मार बला।