पृष्ठ:प्रेम पूर्णिमा.pdf/११२

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

प्रेम-पूर्णिमा पड़े हैं। खोलकर देखा, वे सावरेन थे। मिना पूरे आठ निकले। कुतूहलकी सीमा न रही। ब्रजनायकी छाती धड़कने लगी। आठो सावरेन हाथमें लिये थे सोचने लगे-इन्हें क्या करूँ ! अगर यही रख हूँ वोन जाने किसकी नजर पड़े, न मालूम कौन उठा ले जाय! नही, यहाँ रखना उचित नहीं, चलू थानेमे इसकी इत्तला कर दूं और ये सावरेन थानेदारको सौंप दूं। जिसके होंगे वह आप ले जायगा या अगर उसे न भी मिले तो मुझपर कोई दोष न रहेगा, मै तो अपने उत्तरदायित्वसे मुक्त हो जाऊँगा। मायाने परदेकी आइसे मन्त्र मारना प्रारम्भ किया। वे थाने न गये; सोचा; चलू, भामागे एक दिल्लगी करूँ। भोजन तैयार होगा। कल इतमिनानसे थाने जाऊँगा। भामाने सावरेन देखे, हृदयमें एक गुदगुदी सी हुई। यूछा-किसकी है। 'चलो, कहीं होन।' 'पड़ी मिली है।" 'झूठी बात। ऐसे ही भाग्यके बली हो तो सच बताओ कहाँ मिलीं ? किसकी हैं? 'सच कहता हूँ पड़ी मिली है। "मेरी कसम ? 'तुम्हारी कसम मामा गिन्नियोंको पतिके हायसे छीननेको चेष्टा करने लगी। अजनाथने कहा-क्यों नती हो?