पृष्ठ:प्रेम पूर्णिमा.pdf/११३

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

दुर्गाका मन्दिर मामा-माओ मैं अपने पास रख । रहने दीजिये, मैं इनकी इत्तला करने थाने जाता हूँ।" मामाका मुख मलीन हो गया। बोली-पड़े हुए धनकी क्या चला ब्रजनाय-हॉ और क्या, इन आठ गिनियोंके लिय ईमान विगाड़"न! भामा-अच्छा तो सवेरे चले जाना। इस समय जाओगे तो आनेमें देरी होगी। अजनाथने भी सोचा, यही अच्छा है। थानेवाले रातको तो कोई कार्रवाई करेंगे नहीं। जब अशर्फियोंको पड़ा ही रहना है वत्र जैसे थाना वैसे मेरा घर। गिनियाँ सन्दूकमें रख दी । खा पीकर लेटे तो भामाने हँस- कर कहा-आया धन क्यों छोडते हो, लाओ मैं अपने लिये एक गुलूबन्द बनवा लूं, बहुत दिनोंसे जी तरस रहा है। मायाने इस समय हास्यका रूप धारण किया था। ब्रजनायने तिरस्कार करके कहा-गुलूबन्दकी लालसामें गालेमें फाँसी लगाना चाहती हो क्या ! [३] प्रात:काल ब्रजनाथ थाने चलने के लिये प्रस्तुत हुए। कानून- का एक लेक्चर छूट जायगा कोई इरज नहीं। वे इलाहाबादके हाईकोर्टमें अनुवादक थे। नौकरीमें उन्नतिकी आशा देखकर सालभरने वकालतकी तैयारी में मम ये। लेकिन अभी कपड़े यहिन ही रहे थे कि उनके एक मित्र, मुन्धी गोरेलाल आकर