पृष्ठ:प्रेम पूर्णिमा.pdf/११६

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प्रेम-पूर्णिमा लगते थे। लेकिन आज वेतन मिलनेका दिन है। इसी कारण आनेमें देर हो रही है; आते ही होंगे। छ: बजे, गोरेलालका पता नहीं। कचहरी के कर्मचारी एक-एक करके चले आ रहे थे। ब्रजनाथको कई बार धोखा हुआ। वे आ रहे हैं। जरूर वे ही हैं। वैसी ही अचकन है । वैसी ही टोपी | चाल भी वही है । हाँ, वही हैं। इसी तरफ आ रहे हैं। अपने हृदयसे एक बोझसा उतरता मालूम हुआ । लेकिन निकट आनेपर ज्ञावे हुआ कि कोई और है । आशाकी कल्पित मूर्ति दुराशामें विलीन हो गयी। ब्रजनाथका चित्त खिन्न होने लगा । वे एक बार कुरसीपरसे उठे। बरामदेकीचौखटपर खडे होकर सड़क के दोनों तरफ निगाह दौड़ायी। कहीं पता महौं। दो तीन बार दूरसे भाते हुए इक्कोंको देखकर गोरेलालका प्रम हुआ! आकांक्षाको प्रबलता! सात बजे। चिराग जल गये। सडकपर अन्धेरा छाने लगा। ब्रजनाथ सड़कपर उद्विग्न भावसे टहलने लगे। इरादा हुआ गोरेलालके घर चलूं। उधर कदम बढ़ाये। लेकिन हृदय कॉप रहा था कि कहीं वे रास्तेमें जाते हुए मिल जाय तो समझेंगे कि थोडेसे रुपयेके लिए इतने व्याकुल हो गये। थोड़ी ही दूर गये कि किसीको आते देखा । भ्रम हुआ गोरेलाल हैं । मुड़े और सीधे बरामदेमें आकर दम लिया। लेकिन फिर वही घोखा! फिर वही भ्रान्ति । तब सोचने लगे कि इतनी देर क्यों हो रही है। क्या अभीतक वे कचहरीसेभ आये होंगे। ऐख कदापि नहीं हो सकता। उनके दफ्तरवाले मुद्दत हुई निकल गये। अब, यो