पृष्ठ:प्रेम पूर्णिमा.pdf/१२३

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१२१ दुर्गाका मन्दिर , आठ सहारा मिला। बोली, हाँ बेटी। "कितने दिन हुए " "कोई डेढ महीना "कितने रुपये थे?" "पूरे एक सौ बीस " "कैसे खोये " "क्या जाने कहीं गिर गये। मेरे स्वामी पल्टनमें नौकर थे। आज कई बरस हुए चे परलोक सिधारे । अब मुझे सरकारसे ६०) साल पेंशन मिलती है। अबको दो सालकी पेंशन एक साथ ही मिली थी। खजानेसे रुपये लेकर आ रही थी। मालूम नहीं कब और कहाँ गिर पड़े, मिनियों थी. 'अगर वे तुम्हें मिल जाय तो क्या दोगी ? "अधिक नहीं उनमें से ५०) रुपये दे दूंगी। रुपये क्या होंगे, कोई उससे अच्छी चीज दो।" "बेटी ! और क्या हूँ, जबतक जीऊँगी तुम्हारा यथ गाऊँगी।" 'नहीं, इसकी मुझे आवश्यकता नहीं।" बेटी इसके सिका मेरे पास क्या है?" "मुझे आशीर्वाद दो। मेरे पति बीमार हैं वे अच्छे हो जायँ।" "क्या उन्हीको रुपये मिले हैं।" हाँ, वे उसी दिनसे तुम्हें खोज रहे हैं।" "वृद्धा घुटनोंके बल बैठ गयी और ऑचल फैलाकर कम्पित स्वरसे बोली-देवी, इनका कल्याण करो । मामाने फिर देवीकी ओर आशङ्कित दृष्टिसे देखा। उनके