पृष्ठ:प्रेम पूर्णिमा.pdf/१२४

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प्रेम-पूर्णिमा १२२ दिव्य रूपपर प्रेमका प्रकाश था। ऑखोंमें दयाकी आनन्ददायिती झलक थी। उस समय भामाके अन्तश्करणमें कहीं स्वर्गलोकसे यह ध्वनि सुनाई दी-जा तेरा कल्याण होगा। [ ] सन्ध्याका समय है। भामा ब्रजनाथके साथ इस्केपर बैठ तुलसीके घर उसकी थाती लौटाने जा रही है। ब्रजनाथके बड़े परिश्रमकी कमाई तो डाक्टरकी भेट हो चुकी है, लेकिन मामाने एक पड़ोसीके हाथ अपने कानोंके झूमके बेचकर रुपये जुटाये हैं। जिस समय झुमके बनकर आये थे, भामा बहुत प्रसन्न हुई थी। आज उन्हें बेचकर वह उससे भी अधिक प्रसन्न है। जब ब्रजनाथने आठो गिमियाँ उसे दिखायी थी, उसके हृदयमे एक गुदगुदी सी हुई थी। लेकिन यह हर्ष मुख पर आने- का साहस न कर सका था। आज उन गिन्नियोंको हायसे जाते समय उसका हार्दिक आनन्द आँखोमें चमक रहा है, अोठोंपर नाच रहा है, कपोलोको रग रहा है और अगोपर किलोले कर रहा है। वह इन्द्रियोंका आनन्द था, यह आत्माका आनन्द है। वह आनन्द लज्जाके भीतर छिपा हुआ था, यह आनान्द गर्वसे बाहर निकला पडता है। तुलसीका आशीर्वाद सफल हुआ। आज पूरे तीन स्ताहके बाद ब्रजनाथ तकियेके सहारे बैठे थे। वे बार बार मामाको प्रेम- पूर्ण नेत्रोंसे देखते थे। वह आज उन्हें देवी मालूम होती थी। अबतक उन्होने उसके वाह्य सौन्दर्यकी शोमा देखी थी। आज वह उसका आत्मिक सौन्दर्य देख रहे हैं।