पृष्ठ:प्रेम पूर्णिमा.pdf/१२६

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

प्रेम पूर्णिमा गोरेलाल विदा हो गये तो ब्रजनाथ रुपया लिये हुए भीतर आये और भामासे बोले-ये लो अपने रुपये, गोरेलाल दे गये भामाने कहा-ये मेरे नहीं हैं तुलसीके हैं, एक बार पराया धन लेकर सीख गयी। लेकिन तुलसीके तो पुरे रुपये दे दिये गये 'दे दिये गये तो क्या हुआ, ये उसके आशीर्वादकी न्यौछावर है।' 'कानके झूमके कहाँसे आवेंगे ?' 'झूमक न रहेंगे न सही, सदाके लिए कान तो हो गया।' सेवा-मार्ग- [१] ताराने १२ वर्ष दुर्गाकी तपस्या की। न पलङ्गपर सोयी न केशोंको सॅवारा और न नेत्रोंमें सुर्मा लगाया । पृथ्वीपर सोती, गेरुमा बस्न पहनती और रूखी रोटियाँ खाती। उसका मुख मुर- माई हुई कलीकी भाँति था, नेत्र ज्योतिहीन और हृदय एक शून्य बीहरू मैदान । उसे केवल यही हो लगी थी कि दुर्गाके दर्शन पाऊँ। शरीर मोमबत्तीकी तरह घुलता था, पर यह लौ