पृष्ठ:प्रेम पूर्णिमा.pdf/१२९

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सेवा-मार्ग देखा चकित रह गयी। उसका स्व चन्द्रमाकोभी लजित करता था। दीवारपर अनेकानेक सुप्रसिद्ध चित्रकारोंके मनमोहक चित्र टगे थे। पर ये सब के सब ताराकी सुन्दरताके आगे हुच्छ थे। ताराको अपनी सुन्दरताका गर्व हुआ। वह कई दासियोंको लेकर चाटिकामें गयी। वहाँकी छटा देखकर वह मुग्ध हो गयी। वायुमें गुलाब और केसर घुले हुए थे, रङ्ग-विरङ्गके पुष्प, चायुके मन्द मन्द झोंकोंसे मतवालों की तरह झूम रहे थे। ताराने एक गुलाबका फूल तोड़ लिया और उसके रङ्ग और कोमलता- की अपने अपर पल्लवसे समानता करने लगी। गुलाबमें वह कोमलता न थी। बाटिकाके मध्यमें एक बिल्लौरजटित ोज था। इसमें हंस और बत्तख किलोलें कर रहे थे। यकायक साराको ध्यान आया, मेरे धरके लोग,कहाँ हैं । दासियोंसे पूछा। उन्होंने कहा-वे लोग पुराने घरमें हैं। वाराने अपनी अटारी- पर जाकर देखा। उसे अपना पहला पर एक साधारण झोपड़े. को खरह दृष्टिगोचर हुआ। उसकी बहिर्ने उसकी साधारण दासियोंके समान भी न थीं। मॉको देखा, वह आँगनमें बैठी चरखा कात रही थीं। तारा पहले सोचा करती थी कि जब मेरे दिन चमकेंगे तब मैं इन लोगोंको भी अपने साथ रचूगी और उनकी भलीभाति सेवा करूँगी। पर, इस समय धनके गर्वने उसकी पवित्र हार्दिक इच्छाको निर्बल बना दिया था। उसने घरवालोंको स्नेहरहित दृष्टिसे देखा और तब वह उन मनोहर गानको सुनने चली गयी जिसकी प्रतिध्वनि उसके कानों में आ एक बारगी जोरसे एक कड़का हुआ, बिजली धमकी और