पृष्ठ:प्रेम पूर्णिमा.pdf/१३०

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प्रेम पूर्णिमा बिजलीकी छटाओंसे एक ज्योतिस्वरूप नवयुवक निकलकर सारा- के सामने नम्रतासे खड़ा हो गया । ताराने पूछा, तुम कौन हो? नवयुवकने कहा-श्रीमती, मुझे विद्यु तसिह कहते हैं। मैं श्रीमतीका आज्ञाकारी सेवक हूँ। उसके बिदा होते ही वायुके उष्ण झोके चलने लगे । आकाश में एक प्रकाश दृष्टिगोचर हुआ। वह क्षणमात्र में उत्तरकर तारा- कुँवरिके समीप ठहर गया । उसमेंसे एक ज्वालारूपी मनुष्यने निकलकर ताराके पदोंको चूमा । ताराने पूछा-तुम कौन हो? उस मनुष्यने उत्तर दिया-श्रीमती, मेरा नाम अभिसिंह । मै श्रीमतीका आज्ञाकारी हूँ। वह अभी जाने भी न पाया था कि एकबारगी सारा महल ज्योतिसे प्रकाशमान हो गया। जान पड़ता था, सैकड़ो बिजलियाँ मिलकर चमक रही हैं। वायु सवेग गयी। एक जगमगाता हुआ सिहासन आकाशपर दीख पड़ा। वह शीघ्रतासे पृथ्वीकी ओर चला और ताराकुँवरिके पास आकर ठहर गया। उसके एक प्रकाशमय रूपका बालक, जिसके रूपसे गम्भीरता प्रकट होती थी, निकलकर ताराके सामने निष्टाभावसे खड़ा हो गया। नाराने पूछा-तुम कौन हो? बालकने उत्तर दिया-श्रीमती! मुझे मिस्टर रेडियम कहते है। मैं श्रीमतीका आशापालक हूँ। धनी लोग ताराके भयसे थर्राने लगे। उसके आश्चर्यजनक सौन्दरने ससारको चकित कर दिया । बड़े-बड़े महीपति उस्की