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प्रेम-पूर्णिमा
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बात न करेंगे, तथापि उनमे ऐसा कोई भी नही जो प्रलोभनसे मुडीमे न आ जाय। हॉ, इसमे रुपया पानीकी तरह बहाना पड़ेगा। पर इतना रुपया आवे कहाॅसे! हाय दुर्भाग्य! दो-चार दिन ही पहले चेत गया होता तो कोई कठिनाई न पडती। क्या जानता था कि वह डाइन इस तरह वज्रप्रहार करेगी। बस, अब एक ही उपाय है। किसी तरह वे कागजात गुम कर दूॅ। बड़ी जोखिमका काम है पर करना ही पडेगा।

दुष्कामनाओं के सामने एक बार सिर झुकानेपर फिर सॅभलना कठिन हो जाता है। पापके अथाह दलदल में जहाॅ एक बार पड़े कि फिर प्रति-क्षण नीचे ही चले जाते हैं। मुन्शी सत्यनारायण सा विचारशील मनुष्य इस समय इस फिक्रमें था कि कैसे सेद लगा पाऊॅ। मुन्शीजीने सोचा—क्या सेद लगाना आसान है। इसके वास्ते कितनी चतुरता कितना साहस, कितनी बुद्धि, कितनी वीरता चाहिए। कौन कहता है कि चोरी करना आसान काम है? मै जो कही पकडा गया तोडूब मरनेके सिवा और कोई मार्ग ही न रहेगा।

बहुत सोचने विचारनेपर भी मुन्शीजीको अपने ऊपर ऐसा दुस्साहस कर सकनेका विश्वास न हो सका। हॉ, इससे सुगम एक दूसरी तदबीर नजर आयी—क्यों न दफ्तरमे आग लगा दूॅ? एक बोतल मिट्टीके तेल और एक दियासलाईकी जरूरत है। किसी बदमाशको मिला लूॅ। मगर यह क्या मालूम कि वह बही कमरमे रखी है या नहीं। चुडैलने उसे जरूर अपने पास रख ली होगी। नही, आग लगाना गुनाह बे-लज्जत होगा।

बहुत देरतक मुन्शीजी करवटे बदलते रहे। नये नये मनसूबे सोचते, पर फिर अपने ही तकोंसे उन्हें काट देते। जैसे वर्षाकाल