पृष्ठ:प्रेम पूर्णिमा.pdf/१४३

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शिकारी राजकुमार कठिन जान पड़ने लगा। घरवाले उद्विग्न हो जायेंगे और मालूम नहीं क्या सोचेंगे। साथियोंकी जान सकट मे होगी। घोड़ा बेदम हो रहा है। उसपर ४० मील जाना बहुत ही कठिन और बड़े साहसका काम है। लेकिन यह महात्मा शिकार खेलते हैं यह बड़ी अजीब बात है। कदाचित् यह वेदान्ती हैं, ऐसे वेदान्ती जो जीवन और मृत्यु मनुष्य के हाथ नहीं मानते। इनके साथ शिकार में बड़ा आनन्द आवेगा। यह सब सोच विचारकर उन्होंने संन्यासीका आतिथ्य स्वीकार किया, उन्हें धन्यवाद दिया और अपने भाग्यकी प्रशंसा की, जिसने उन्हें कुछ कालतक और साधु संगसे लाभ उठानेका अवसर दिया। रात दस बजेका समय था। धनी अधियारी छाई हुई थी। संन्यासीने कहा-अब हमारे चलनेका समय हो गया है। राजकुमार पहलेहीसे प्रस्तुत था । बन्दूक कन्धेपर रस्त्र बोला- इस अन्धकारमें शूकर अधिकतासे मिलेगे। किन्तु, ये पशु बड़े भयानक हैं। सन्तासीने एक मोटा-सोटा हाथमें लिया और कहा-कदा. चित् इससे भी अच्छे शिकार हाथ आवे। मैं जब अकेला जाता हूँ, कमी खाली नहीं लौटता । आज तो हम दो हैं । दोनों शिकारी नदीके लटपर नालों और रेतके टीलोंको पार करते और झाड़ियोंसे अटकते चुपचाप चले जा रहे थे। एक ओर श्यामवर्ण नदी थी, जिसमें नक्षत्रोंका प्रतिबिम्ब नाचता