पृष्ठ:प्रेम पूर्णिमा.pdf/१४४

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प्रेम-पूर्णिमा दिखाई देता था और लहरे गान कर रही थीं। दूसरी ओर घन- घोर अन्धकार जिसमें कभी-कभी केवल खद्योतोंके चमकनेसे एक क्षण स्थायी प्रकाश फैल जाता था। मालूम होता था कि वे भी अन्धेरे में निकलनेसे डरते हैं। ऐसी अवस्थामें कोई एक घण्टा चलनेके बाद वह एक ऐसे स्थानपर पहुँचे, जहाँ एक ऊंचे टीलेपर घने वृक्षों के नीचे आग जलती दिखाई पड़ी। उस समय इन लोगोंको मालूम हुआ कि ससारके अतिरिक्त और भी कई वस्तुएँ हैं। सन्यासीने ठहरनेका संकेत किया। दोनों एक मेड़की ओटमें खड़े होकर ध्यानपूर्वक देखने लगे। राजकुमारने बन्दूक भर ली। टीलेपर एक बड़ा छायादार वट-वृक्ष भी था। उसीके नीचे अन्धकारमें १०-१२ मनुष्य अस्त्र-शस्त्रोंसे सुसज्जित मिर्जई पहिने चरसका दम लगा रहे थे। इनमेसे प्रायः सभी लम्बे थे। सभीके सीने चौड़े और सभी इष्ट पुष्ट । मालूम होता था कि सैनिकोंका एक दल विश्राम कर रहा है। राजकुमारने पूछा-यह लोग शिकारी हैं ! सन्यासीने धीरेसे कहा-बड़े शिकारी है। ये राह चलते यात्रियोंका शिकार करते है । ये बड़े भयानक हिल पशु है। इनके अत्याचारोंसे गॉवके गाँव बर्बाद हो गये और जितनोंको इन्होंने मारा है उनका हिसाब परमात्मा ही जानता है। यदि आपको शिकार करना हो तो इनका शिकार कीजिये। ऐसा शिकार आप बहुत प्रयत्न करने पर भी नही पा सकते। यही पशु हैं जिनपर आपको शस्त्रोंका प्रहार करना उचित है। राजाओं और अधिकारियोंके शिकार यही है। इससे आपका नाम और यश फैलेगा।