पृष्ठ:प्रेम पूर्णिमा.pdf/१४९

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प्रेम-पूर्णिमा . १४८ कर दिया। धीरे धीरे कारखाना टूट गया, जमीन टूट गयी गाहक टूट गये और वह भी टूट गया | सत्र वर्षका बूढा, जो एक तकियेदार माचेपर बैठा हुआ नारियल पिया करता, अब सिरपर टोकरी लिये खाद फेकने जाता है। परन्तु उसके मुखपर अब भी एक प्रकारकी गम्भीरता, बातचीत में अब भी एक प्रकार- की अकड, चाल-ढाल में अब भी एक प्रकारका स्वाभिमान भरा हुआ है। इसपर कालकी गतिका प्रभाव नही पडा। रस्सी जल गयी, पर बल नही टूटा । भले दिन मनुष्यके चरित्रपर सदैवके लिये अपना चिह्न छोड जाते हैं। हरखूके पास अब केवल पॉच बीघा जमीन है, केवल दो बैल हैं । एक ही हलकी खेती होती है । लेकिन पञ्चायतों में, आपसकी कलहमें, उसकी सम्मति अब भी समान दृष्टिसे देखी जाती है। वह जो बात कहता है, बेलाग कहता है और गॉवके अनपढे उसके सामने मुँह नही खोल सकते। हरखूने अपने जीवनमें कभी दवा नहीं खाई थी । वह बीमार जरूर पड़ता, कुआर मासमें मलेरियासे कभी न बचता था। लेकिन दस-पाँच दिनमें वह बिना दवा खाये ही चङ्गा हो जाता था। इस वर्ष भी कार्तिकमे बीमार पडा और यह समझकर कि अच्छा तो हो ही जाऊँगा, उसने कुछ परवाह न की । परन्तु अबको स्वर मौतका परवाना लेकर चला था । एक सप्ताह बीता, दूसरा सप्ताह बीता, पूरा महीना बीत गया पर हरखू चारपाईसे न उठा। अब उसे दबाकी जरूरत मालूम हुई । उसका लड़का गिरधारी कमी नीमकी सीखे पिलाता, कभी गुर्चका सत, कभी गदा पूरनाकी जड़। पर इन औषधियोंसे कोई फायदा न होता था।