पृष्ठ:प्रेम पूर्णिमा.pdf/१५१

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प्रेम पूर्णिमा १५० बेलामें होलीन मनाई गयी, न अबीर और न गुलाल उड़ी, न डफली बजी, न भङ्गकी मालियाँ बहीं । कुछ लोग मनमें हरखू- को कोसते जरूर थे कि इस बुड्ढेको आज ही मरना था, दो चार दिन बाद मरता। लेकिन इतना निलज्ज कोई न था कि शोकमें आनन्द मनाता, वह शहर नहीं था, जहाँ कोई किसीके काममें शरीक नहीं होता, जहाँ पड़ोसीके रोने पीटनेकी आवाज हमारे कानोतक नहीं पहुँचती। [ २ ] हरखूके खेत गाँववालोकी नजरपर चढ़े हुए थे । पाँचो बीघा जमीन कुएँ के निकट खाद पाँससे लदी हुई मेड बॉघसे ठीक थी। उनमें तीन तीन फसलें पैदा होती थी। हरखूके मरते ही उनपर चारो ओरसे धावे होने लगे। गिरधारी तो क्रिया-कर्ममे फँसा हुआ था। उधर गॉवके मनचले किसान छाला ओकारनाथको चैन न लेने देते थे, नजरानेकी बड़ी बड़ी रकमें पेश हो रही थी। कोई सालभरका लगान पेशगी देनेपर तैयार था कोई नजरानेकी दूनी रकमका दस्तावेज लिखनेपर तुला हुआ था। लेकिन ओंकार- नाथ सबको टालते रहते थे। उनका विचार था कि गिरधारीके यापने इन खेतोंको बीस वर्षतक जोता है, इसलिये गिरधारीका हक सबसे ज्यादा है। वह अगर दूसरोसे कम भी नजराना दे तो खेत उसोको देने चाहिये । अस्तु, जब गिरधारी क्रिया-कर्मसे निवृत्त हो गया और चैतका महीना भी समास होने आया, तब जमीदार साहबने गिरधारी को बुलाया और उससे पूछा-खेतोंके बारेमें क्या कहते हो?