पृष्ठ:प्रेम पूर्णिमा.pdf/१५२

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कुछ जमा- १५१ बलिदान गिरधारीने रोकर कहा- सरकार, इन्हीं खेतों होका तो आसरा है, जोतूंगा नहीं तो क्या करूँगा। ओकारनाय-नहीं, जरूर जोतो, खेत तुम्हारे हैं। मैं तुमसे छोड़नेको नहीं कहता। हरखूने उसे बीस सालतक जोता। उनपर सुम्हारा हक है । लेकिन तुम देखते हो अब जमीनकी दर कितनी बढ़ गयी है। तुम आठ रुपये बीघेपर जोतते थे, मुझे १०) मिल रहे हैं और नजरानेके सौ अलग । तुम्हारे साथ रिआयत करके लगान वही रखता हूँ, पर नजरानेके रुपये तुम्हें देने पड़ेगे। गिरधारी-सरकार, मेरे घरमें तो इस समय रोटियोका भी ठिकाना नहीं है। इतने रुपये कहासे लाऊँगा ? जो जया यी दादाके काममें उठ गयी। अनाज खलिहानमें है। लेकिन दादाके बीमार हो जानेसे उपज भी अच्छी नहीं हुई। रुपये कहासे लाऊँ? ओंकारनाथ-यह सच है लेकिन मैं इससे ज्यादा रिआयत नहीं कर सकता। गिरधारी-नही सरकार ! ऐसा न कहिये। नहीं तो हम बिना भारे मर जायेंगे। आपबड़े होकर कहते हैं तो मैं बैल बछिया बेचकर पचास रुपया ला सकता हूँ। इससे वेशीकी हिम्मत मेरी नहीं पड़ती। ओंकारनाथ चिढ़कर बोले-तुम समझते होगे कि हम ये रुपये लेकर अपने घरमें रख लेते हैं और चैनकी वशी बजाते । लेकिन हमारे ऊपर जो कुछ गुजरती है हमही जानते हैं। कही यह चन्दा, कहीं वह चन्दा; कही यह नजर, कही यह नजर, कहीं यह इनाम, कही वह इनाम । इनके मारे कचूमर निकल