पृष्ठ:प्रेम पूर्णिमा.pdf/१५८

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बलिदान मगलसिंह-एक गाहक वो हमी है, हमीको दे दो। गिरधारी अभी कुछ उत्तर न देने पाया था कि तुलसी बनिया आया और गरजकर बोला-गिरधर ! तुम्हें रुपये देने हैं कि नहीं, वैसा कहो । तीन महीने हीला-हवाला करते चले आते हो। अब कौन खेती करते हो कि तुम्हारी फसलको अगोरे गिरधारीने दीनतासे कहा-साह, जैसे इतने दिनों माने हो आज और मान जाओ। कल तुम्हारी एक एक कौड़ी चुका दूंगा। मङ्गल और तुलसीने इशारोंसे बात की और तुलसी भुन- भुनाता हुआ चला गया। तब गिरधारी मंगलसिंहसे बोला- तुम इन्हे ले लो तो घरके घरहीमे रह जायें। कभी कभी ऑस्खसे देख वो लिया करूँगा। मङ्गलसिह-मुझे अभी तो ऐसा कोई काम नहीं लेकिन घर पर सलाह करूंगा। गिरधारी-मुझे तुलसीके रुपये देने हैं, नही तो खिलानेको तो भूसा है। मङ्गल सिंह-यह बड़ा बदमाश है, कही मालिशन कर दे। सरल हृदय गिरधारी धमकीमे आ गया। कार्य-कुशल मगलसिइको सस्वा सौदा करनेका अच्छ सुअवसर मिला। ८०) की जोडी ६०) मे ठीक कर ली। गिरधारीने अबतक बैलोको न जाने किस आशासे बाँधकर खिलाया था। आज आशाका वह कल्पित सूत्र भी टूट गया। मंगलसिह गिरधारीकी खाटपर बैठे रुपये मिन रहे थे और