पृष्ठ:प्रेम पूर्णिमा.pdf/१६०

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बलिदान ओर ताक रही थी कि सहसा उसे पैरोंकी आहट मालूम हुई। सुभागीका हृदय धड़क उठा । वह दौड़कर बाहर आयी और इधर-उधर ताकने लगी। उसने देखा कि गिरधारी बैलोंकी नोदके पास सिर झुकाये खड़ा है। सुभागी बोल उठी-घर आओ वहाँ खड़े क्या कर रहे हो, आज सारे दिन कहाँ रहे? यह कहते हुए वह गिरधारीकी ओर चली। गिरधारीने कुछ उत्तर न दिया। वह पीछे हटने लगा और थोड़ी दूर जाकर गायब हो गया। सुभागी चिल्लाई और मूञ्छित होकर गिर पड़ी। दूसरे दिन कालिकादीन हल लेकर अपने नये खेतपर पहुँचे, अभी कुछ अन्धेरा था । वह बैलोंको हलमें लगा रहे थे कि यका. यक उन्होंने देखा कि गिरधारी खेतकी मेड़पर खडा है। वही मिर्जई, वही पगड़ी. वही सोंटा। कालिकादीनने कहा-अरे गिरधारी। मरदे आदमी, तुम यहाँ खड़े हो, और बेचारी सुभागी हैरान हो रही है। कहाँसे आ यह कहते हुए बैलोंको छोड़कर गिरधारीकी ओर चले। गिरधारी पीछे हटने लगा और पीछेवाले कुऍमें कूद पड़ा। कालिकादीनने चोख मारी और हल-बैल वहीं छोड़कर भागा। सारे गाँवमे शोर मच गया, लोग नाना प्रकारकी कल्पनाएँ करने लगे। कालिकादीनको गिरधारीवाले खेतोंमें जानेकी हिम्मत ज पड़ी। गिरधारीको गायब हुए ६ महीने बीत चुके हैं । उसका बड़ा