पृष्ठ:प्रेम पूर्णिमा.pdf/१६३

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

प्रेम शिम १६२ रखते थे। कमी सेर आध सेर दूध भेज देते और कभी थोड़ी-सी तरकारियाँ। किन्तु इसके बदले में पण्डितजीको ठाकुर साहबके दो और मुन्शीजीके तीन लड़कोकी निगरानी करनी पड़ती । मकुर. साहब कहते - पण्डितजी ! यह लड़के हर घड़ी खेला करते हैं, जरा इनकी खबर लेते रहिये।' मुन्शीजी कहते-'यह लड़के अवारा हुए जाते हैं। जरा इनका ख्याल रखिये। यह बातें बड़ी अनुग्रहपूर्ण रीतिमे कही जाती थी मानों पण्डितजी उनके गुलाम हैं। पण्डितजीको यह व्यवहार असह्य था, किन्तु इन लोगोंको नाराज करनेका साहस न कर सकते थे, उनकी बदौलत कभी-कभी दूध-दहीके दर्शन हो जाते, कभी अचार चटनी चख लेते । केवल इतना ही नही, बाजारसे चीजे भी सस्ती लाते। इसलिये बेचारे इस अनीतिको विषयको चूटके समान पीते । इस दुरवस्थासे निकलनेके लिए उन्होंने बड़े-बड़े यत्न किये थे। प्रार्थनापत्र लिखे, अफसरोंकी खुशामदे की, पर आशा न पूरी हुई। अन्समें हारकर बैठ रहे । हॉ, इतना था कि अपने काममें श्रुटि न होने देते। ठीक समयपर जाते, देर करके आते, मन लगाकर पढाते, इससे उनके अफसर लोग खुश थे। सालमें कुछ इनाम दे देते और वेतन वृद्धि का जब कभी अवसर आता, उनका विशेष ध्यान रखते। परन्तु इस विभागकी वेतनवृद्धि ऊसरकी खेती है। बडे भाग्यसे हाथ लगती है। बस्तीके लोग उनसे सन्तुष्ट थे, लड़कोंकी सख्या बढ गयी थी, और पाठशालाके लड़के तो उनपर जान देते थे। कोई उनके घर आकर पानी भर देता, कोई उनकी बकरीके लिये पत्तियाँ तोड़ लाता। पण्डितजी इसीको बहुत समझते थे।