पृष्ठ:प्रेम पूर्णिमा.pdf/१६५

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प्रेम-पूर्णिमा १६४ ठाकुर-क्या हमने किराया नही दिया है। मुसाफिर-जिसे किराया दिया हो, उससे जाकर जगह माँगो। ठाकुर-जरा होशकी बातें करो। इस डब्बेमें दस यात्रियोके बैठने की आज्ञा है। मुसाफिर-यह थाना नहीं है, जरा जबान सँभालकर बाते कीजिये। ठाकुर-तुम कौन हो जी? मुसाफिर- हम वही हैं जिसपर आपने खुफिया-फरोशीका अपराध लगाया था और जिसके द्वारसे आप नक्द २५) लेकर टले थे। अकुर-अहा ! अब पहचाना । परन्तु मैने तो तुम्हारे साथ रियायत की थी। चालान कर देता तो तुम सजा पा जाते। मुसाफिर-और मैंने भी तो तुम्हारे साथ रियायत की कि गाड़ीमें खड़ा रहने दिया । ढकेल देता तो तुम नीचे चले जाते और तुम्हारी हड्डी-पसलीका पता न लगवा । इतनेमें दूसरा लेटा हुआ यात्री जोरसे ठहा मारकर हँसा और बोला-क्यों दारोगा साहब, मुझे क्यों नहीं उठाते ? ठाकुर साहब क्रोधसे लाल हो रहे थे। सोचते थे अगर थानेमें होता तो इनकी जबान खींच लेता, पर इस समय बुरे फंसे थे। वह बलवान मनुष्य थे, पर यह दोनों मनुष्य भी हट्टे कह देख पड़ते थे। ठाकुर-सन्दूक नीचे रख दो, बस जगह हो जाय | दूसरा मुसाफिर बोला-और आप हो क्यो न नीचे बैठ